________________
[ २ ) (५) रतन चिन्तामणि लाभतां, कुण ग्रहइ कहठ काच ।
दूध थकां कुण छासिनइ, पीयइ, सहु कहइ साच ॥ (चिंतामणि मिलते, काच कौन ग्रहण करे ? दूध मिलते छाछ कौन पिए १) (६) भरतनइ तात किसी ए करणी, आपणी करणी पार उतरणी।
(खण्ड ३, ढाल ४, छन्द ६) (अपनी करनी से सब पार उतरते हैं।) (७) बालक वृद्ध नइ रोगियउ, साध वामण नइ गाइ । अवला एह न मारिवा, मायाँ महापाप थाइ॥
(खण्ड ३, ढाल ७, छन्द १३) (वालक, वृद्ध, रोगी, साधु, ब्राह्मण, गाय और अवला इन्हें नहीं मारना चाहिए क्योंकि इन्हें मारने से महापातक होता है।) (८) महिधर राय सुखी थयो, मुंग माहि ढल्यो घीय। विछावणों लह्यो ऊंघतां, धान पछउत्रे सीय॥
(खण्ड ४, ढाल ४, छन्द ४ ) (घी विखरा तो मूंगों मे। उंघते को विछौना मिल गया ।) (९) पाचों माई कहीजियई, परमेसर परसाद ।
(खण्ड ५, ढाल १, छन्द १) (पंचों में परमेश्वर का प्रसाद कहा जाता है।) (१०) साधु विचार्यो रे सूत्र कहेइ, समरथ सज्जा देई।।
( खण्ड ५, पृष्ठ ८८) ( समर्थ सजा देता है।) (११) लिख्या मिटई नहिं लेख ।
(खण्ड ५, ढाल ३, छन्द १) (लिखे लेख नहीं मिटते ।)