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कर जोडी श्रेणिक कहइ, कहउ भगवन ते केमो रे । सुरिण श्रेणिक गौतम कहइ, ए पूरव भव एमो रे ॥६।गौ०।। भरतखेत्र मइ रिधिभरयर, नामइ नगर मृणालो रे। श्रीभूति प्रोहित नी सुता, वेगवती सुकमालो रे ॥१०॥ गौ० ।। तिण अवसरि पान्यउ तिहाँ, साध सुदरसण नामो रे । कानन मइ' काउसगि रह्यउ, उत्तम गुण अभिरामो रे ॥११।।
व्रत नी रक्षा करइ, (६) वलि छज्जीव निकायो रे (१२) इद्री पाच प्राण्यां वसि, (१७) निरलोभी कहिवायो रे (१८)॥१२॥गौ।। क्षमावत (१९) सुभ भावना, (२०) कठिन क्रिया गुणपात्रो रे (२१) संयम योग सूधा धरइ, (२२) त्रिकरण सुद्ध सुगात्रो रे (२५)।।१३।। गौ० सीत तावड पीड़ा सहइ, (२६) मरणसीम उपसर्गो रे (२७) सत्तावीस गुणे करी, रोडइ करम ना वर्गो रे ।।१४।। गौ०।। पहली ढाल पूरी थइ, किया साध ना गुण ग्रामो रे । समयसुन्दर कहइ ए साध नइ, नित २ करउ प्रणामो रे ॥१५॥ गौ०॥
[ सर्व गाथा २३ ]
साधु तणउ पागम सुणी, हरख्या सहु नर नारि । वादण पाया साध नइ, हय गय रथ परिवारि ॥१॥ दीधी साधजी देसणा, ए ससार असार । घरम करउ रे प्रारणीया, जिम पामउ भव पार ॥२॥
१ वन माहे २ समठ