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( ५६ ) सूरवीर तुम्हें साहसी, मुखि करतउ गुण ग्राम ॥ आगलि आवी ऊभउ रह्यउ, रामनई करइ प्रणाम ॥४॥ मुझ आगइ रिपु आजथी, उभउ न रह्यउ कोइ। हेलामईजीतउ तुम्हें, इन्द्रभूति हूँ सोइ ॥५॥ ने कहउ ते हिव हुं करूँ, पभणइ वे कर जोड़ि ।। राम कहई इन्द्रभूति तु वालिखिल्लनउ छोडि | तुरत तेडावी तेह नइ, छोड्यउ राम हजूर । वालिखिल्ल हरपित थयउ, रुद्र नई कीयउ सनूर ॥७॥
[सर्वगाथा१३८ ढाल छठी ढाल-ईडरियै २ उलगाणइ आबू उलग्यउ आ० रे लाल । करजोड़ी राजा कहइ, किहा थी आवीया।। किहां थी आवीया रे लाल, किहां थी आवीया ॥ कुण तुम्हें २ मईवासी म्लेच्छ हराविया । म्ले० लाल । वि० ॥११॥ किम जाण्यउ २ कहउ राजा वालखिल्ल वाधियउ । वा० लाल वा० विण ओलख्या २ इवड़उ उपकार तुम्हें किउ लाल उ० ||२|| राम कहइ २ तू जाणिस आपणइ धरि गयउ आ० लाल आ० ।। वाल्हेसर २ कहिस्यइ विरतात जिकड थयउ। वि० लाल वि० ॥३।। इम कहि नइ २ राजानइ घर पहुचाडियउ । घ० लाल । घ० परमारथ २ वाल्हेसर सहु समझाडियउ। स० लाल स०॥४॥ पुरविली २ परिपालइ वालखिल्ल राजनइ । वा० लाल । वाला सापुरसा २ सरिखउ कुण पर काज नइ । प० लाल । प०॥५॥