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(१६) छठ्ठी राति लिख्या जे अक्षर कूण मिटावइ सोइ ।
(छठी रात को जो अक्षर लिख दिये गये, उनको कौन मिटा सकता है ?) (२०) आभई वीजलि उपमा हो। (पृ. १७६)
(वादल की बिजली।) (२१) थूकि गिलइ नहि कोड। (खण्ड ६, ढाल ३, छन्द ११)
( थककर कोई नहीं चाटता।)
ऊपर दी हुई सभी कहावतों के राजस्थानी रूपान्त र आज भी उपलब्ध हैं। उससे कम से कम इतना स्पष्ट है कि कविवर समयसुन्दर । के जमाने मे उक्त कहावतं प्रचलित थीं। कवि ने कहावतों के साथ साथ सूक्तियो और मुहावरों का भी प्रयोग किया है। कहीं-कहीं सस्कृत सूक्तियों का अनुवाद भी कर दिया है। उदाहरणार्थ .___ "जीवतो जीव कल्याण देखइ” (पृष्ठ १०४) वाल्मीकि रामायण के "जीवन्भद्राणि पश्यति" का अनुवाद मात्र है। "सीताराम चौपाई' में यह उक्ति राम की हनुमान के प्रति है। राम हनुमान से कहते हैं कि ऐसा प्रयत्न करना जिससे सीता जीवित रहे। वाल्मीकि रामायण में आत्महत्या न करने का निश्चय करते हुए स्वय हनुमान कहते है कि यदि मनुष्य जीता है तो कभी न कभी अवश्य कल्याण के दर्शन करता है इसी प्रकार "बीसार्यो अंगीकार नहि, उतमनइ आचार" "अंगीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति' का स्मरण दिलाता है। कहावत के लिए कवि ने 'उखाण' का प्रयोग किया है। एक स्थान पर सूज शब्द का प्रयोग हुभा है। कहावत भी वस्तुत. एक प्रकार का वाकसूज ही है।