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[ ६३ ] निरपराध छोड़ने की बात से कुपित होकर उन्होंने वनजंघ से अयोध्या पर चढ़ाई करने के लिये सहाय्य मांगा। वनजंघ ने पैर लेने के लिये आश्वासन दिया । पृथु राजा ने अपनी पुत्री कनकमाला कुश को परणा दी। कुछ दिन वहाँ रह कर लव, कुश ससैन्य विजय के निमित्त निकल पड़े। वनजंघ की सहायता से गगा सिन्धु पार होकर काश्मीर कावुल, कैलाश पर्यन्त देशों को वशवर्ती कर लिया। फिर माता के पास विजेता लव कुश ने आकर चरण वंदना की । सीता भी पुत्रों की समृद्धि देखकर प्रसन्न हुई। नारद मुनि ने आकर राम लक्ष्मण का राज्य पाने का आशीर्वाद दिया। लव कुश के मन में अयोध्या पर चढ़ाई करने की उत्कट तमन्ना होने से तुरंत रणभेरी बजा कर सेना को सुसज्जित कर लिया। सीता ने आँखों में आँसू लाकर पिता व चाचा से युद्ध करने में अनथे की आशंका वतलाई तो पुत्रों ने पिता व चाचा को युद्ध में न मार, सैन्य संहार द्वारा मान भंग करने का निर्णयकहकर सीता को आश्वस्त किया।
लव कुश का अयोध्या प्रयाण लव कुश की सेना के आगे दस हजार पुरुप पेड़ पौधे हटाकर जमीन समतल करने वाले चल रहे थे। योजनान्तर में पड़ाव डालते हुए क्रमशः सेना अयोध्या के निकट पहुंची। राम ने कुपित होकर सिंह और गरुड़ वाहन तय्यार करवाये। नारद मुनि ने भामंडल के पास जाकर सीता वनवास, वनजंघ के संरक्षण मे लव कुश के बड़े
होकर प्रतापी होने का सारा वृतान्त सुनाते हुए उनके द्वारा अयोध्या ___ पर चढ़ाई होने की सूचना दी। भामंडल माता, पिता के साथ सीता