________________
[ ७६ ] थे। वे शीतकाल मे खुले शरीर शीत परिपह व उष्णकाल में शिलाओ पर आतापना लेकर इन्द्रिय दमन करते थे। निर्यथ राम तीव्र त्याग वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। वे सुत्रतसूरि की आज्ञा लेकर अकेले पर्वत और भयानक अटवी में कायोत्सर्ग ध्यान करते एवं नाना अभिग्रह लेकर परिषह उपसर्ग सहते हुए तप संयम से आत्मा को भावित करते थे। उन्हें एक दिन अटवी मे तप करते हुए अवधिबान उत्पन्न हुआ, जिससे उन्होंने लक्ष्मण को नरक की असह्य वेदना सहते हुये देखा और सोचा कर्मों की गति कैसी विचित्र है, महापुरुष भी उनसे नहीं छूटते। कर्म विपाक और संसार स्वरूप को प्रत्यक्ष देख कर राम के त्याग वैराग्य में खूब अभिवृद्धि हुई। शुद्ध भावनायें और धर्म-ध्यान शुक्ल-ध्यान ध्याते हुए मुनि रामचन्द्र कोटिशिला पर योग निरोध कर कायोत्सर्ग ध्यान मे तल्लीन हो गये। सीतेन्द्रने जव अवधिज्ञान से रामचन्द्र मुनि को ध्यान श्रेणि मे चढ़ते हुए देखा तो उसके मन मे मोहवश यह विचार आया कि राम को क्षपक श्रेणि से नीचे गिरा दूं ताकि वे मोक्ष न जाकर देवलोक में मेरे मित्र रूप मे उत्पन्न हों
और हमलोग प्रेमपूर्वक रहे। इन विचारों से प्रेरित होकर सीतेन्द्र राम के निकट आया और पुष्पवृष्टि करके सीता का दिव्य रूप धारण कर बत्तीस प्रकार के नाटक करने प्रारम्भ कर दिये । नाना हावभाव, विभ्रम करके कभी सीता के रूप मे, कभी विद्याधर कन्याओं के पाणिग्रहणादि का प्रलोभन देकर राम को क्षुब्ध करने का भरसक प्रयत्न किया पर सराग वचनों को सुन कर भी रामचन्द्र अपने ध्यान में निश्चल .. रहे और क्षपक श्रेणि आरोहण कर चार घनघाती कर्मों का क्षय कर । केवलनान केवलदर्शन प्रगट किया। देवों ने कंचनमय कमल स्थापन ।