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[ ७४ ] को प्रतिवोध देने के लिए नाना प्रकार से उपक्रम किया। देवों ने सूखे. सरोवर से सिंचन, मृतक बैल से हल जोतना, शिला पर कमल उगाने, घानी में बालू पीलने आदि के विपरीत कृत्य दिखाये। राम ने कहा -ये मूर्खतापूर्ण चेष्टाएं क्यों करते हो ? देवों ने कहा-महापुरुष ! आप पैरों में जलती न देख कर पर्वत जलता देखते हो, स्वयं मृतक को लिए हुए फिरते हो, दूसरों को शिक्षा देते हो। राम ने कहा-मूर्यो, अमंगल मत बोलो, मेरे भाई ने मेरे से रुष्ट होकर कदाग्रह कर रखा है। देव जटायुध राम के तीव्र मोहनीय का उदय जानकर और कोई उपाय करने का सोचने लगा।।
देव ने एक मृतक स्त्री के मुख में कवल देते हुये दिखाया। राम ने कहा-मूर्ख । मृतक को क्या खिलाते हो ? उसने कहा-यह मेरी स्त्री मेरे से रुष्ट हो गई है, दुश्मन लोग इसे मृतक कहते है अतः उनके वचन असह्य होने से मैं आपके पास आया हूँ। राम ने अपने जसा ही रोगी उसे समझ कर अपने पास रख लिया। एक दिन दोनों कहीं गये और वापस आते देव-माया से लक्ष्मण को स्त्री से हँसते-बोलते काम-केलि करते दिखाया और राम से कहा-तुम्हारा भाई वड़ा पापी है, मेरी स्त्रीके साथ हास्य विनोद करता है, मेरी स्त्री भी बड़ी चपल है। इन दोनों के फेर में अपन दोनों भूल कर रहे है। आपने इसके पीछे राजपाट छोड़ा और ये लाज शर्म व मर्यादा त्याग बैठे हैं। संसार असार है, कोई किसीका नहीं, वीतराग भगवान का धर्म आराधन करना ही श्रेयस्कर है। मरण के भय से कोई भी स्वजन सम्वन्धी वचा नहीं सकते। तुम्हारे भाई को जेसे तुम लाख उपाय करने पर भी न बचा सके तो तुम्हें कौन बचावेगा ? देवता के प्रति