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[ ७० ] हुआ। एक दिन सेठ ने गोकुल में मरते हुए बल को देखकर उसे नवकार मन्त्र सुनाया। जिसके प्रभाव से वह उसी नगरी के राजा छत्रछिन्न की रानी श्रीकान्ता का वृषभ नामक पुत्र हुआ। एक दिन राजकुमार गोकुल मे गया, वहां उसे जातिस्मरण ज्ञान होने से पूर्वभव स्मरण हो आया। उसने अपने को अन्त समय में नमस्कार महामन्त्र सुनानेवाले उपकारी सेठ की खोजके लिए एक मन्दिर बनवाकर उसमें अपना पूर्वभव चित्रित करवा दिया और सेवकों को निर्देश कर दिया कि जो इस चित्र को देखकर परमार्थ वतलावे, उससे मुझे मिलाना ! एक दिन पद्मरुचि सेठ उस मन्दिर मे आया और चित्र को गौर से देखते हुए समझ गया कि जिस बैल को मैने नवकार मन्त्र सुनाया था वही मरकर राजा वृषभ हुआ है और जाति-स्मरण से पूर्व भव ज्ञात कर यह चित्र बनवाया मालूम देता है। सेठ की चेष्टाओं को देखकर सेवक ने राजकुमार को खबर दी । राजकुमार ने जिनेश्वर भगवान को नमस्कार कर सेठ के मना करने पर भी उसे वन्दना की और उपकारी के प्रति आभार प्रदर्शित किया। सेठ ने उसे श्रावक व्रत ग्रहण करने की प्रेरणा की। राजा व सेठ दोनो व्रत पालन कर द्वितीय स्वर्ग मे गये। पद्मरुचि वहाँ से च्यवकर नंद्यावर्त्त गांव के राजा नन्दीश्वर का पुन नयणानन्द हुआ, वहां से चतुर्थ देवलोक गया फिर च्यवकर महाविदेह क्षेत्र के क्षेमपुरी में विपुलवाहन का पुत्र श्रीचन्दकुमार हुआ। वह समाधिगुप्तसूरि के पास चारित्र ग्रहण कर पांचवें देवलोक का इन्द्र हुआ। उस समय गुणवती के कारण भवभ्रमण करते हुए वसुदत्त और श्रीकान्त मे से श्रीकान्त मृणालनगर के राजा वजूजम्बु की रानी हेमवती का पुत्र सयंभू हुआ और वसुदत्त