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[ ५५ ] • स्थान पर नाटक होने लगे । सधवा स्त्रिया पूर्ण कुम्भ धारण कर वधा रही थीं। सब लोग राम लक्ष्मण, सीता, विशल्या, हनुमान, भामंडल आदि के गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे। सर्वप्रथम राम जब सपरिवार माताओं के महल मे गए तो सुमित्रा, अपराजिता और कैकयी ने पुत्रो व पुत्र-वधुओ का स्वागत किया, राम, लक्ष्मण सपरिवार माताओं के चरणो में गिर पड़े। सर्वत्र हर्प और उत्साह की लहरें उमडने लगी । भरत शत्रुघ्न ने भ्राताओं के चरणों मे नमस्कार किया। राम लक्ष्मणादि की रानियां भिन्न-भिन्न महलो मे आनन्द-पूर्वक रहने लगी।
भरत चारित्र-ग्रहण ___ एक दिन भरत ने प्रबल वैराग्यवश राम के पास आकर दीक्षा लेने की आजा मागते हुए कहा-यह राजपाट संभालिये, मैं असार संसार को त्याग कर मुनि-दीक्षा लूंगा। मेरी पहले से ही मुनि बनने की इच्छा थी, पर माता के आग्रह से राज्य भार स्वीकार करना पड़ा अब कृपा कर मुझे अपने चिर मनोरथ पूर्ण करने का अवसर दें। राम ने भरत को बहुत समझाया पर उसकी आत्मा संयम रग मे रंजित थी। कुलभूषण केवली के अयोध्या पधारने पर भरत ने हजार राजाओं के साथ चारित्र ग्रहण कर लिया। निम्रन्थ राजर्षि भरत तप संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे।
राम-राज्याभिषेक सुग्रीव आदि विद्याधरों ने राम को राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना की तो राम ने कहा-लक्ष्मण वासुदेव है, उसका राज्याभिषेक करो,