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[ ५७ ] नजर उठा के भी नहीं देखा! सौतने पूछा-कोई तो रावण का अंगोपांग दृष्टिगोचर हुआ ही होगा। सीता ने कहा-नीची दृष्टि किये होने से उसके पाँव तो अनायास ही दीख गये थे। सौत ने कहा-हमें चरण ही आलेखन कर दिखाओ, हमारे मन में उसे देखने का बड़ा औत्सुक्य है। इस प्रकार सीता को भ्रमा कर उससे चित्रालेखन करवा के राम को दिखाते हुए कहा कि आप जिसके प्रेम मे लुब्ध हैं वह सीता तो अहर्निश रावण के ध्यान में, चरण-सेवा मे निमग्न रहती है। हमने कई वार उसे ऐसा करते हुए देखा पर सोचा कौन किसीकी बुराई करे, आज अवसर पाकर आप से कहा है। स्त्री-चरित्र बड़ा विकट है, यदि विश्वास न हो तो ये चरणों के चित्र का प्रत्यक्ष प्रमाण देख लें। राम के मन मे सीता के शील की पूरी प्रतीति थी, अतः उन्होंने सीता पर लेश मात्र भी सन्देह न लाकर अन्य रानियो के कथन को केवल सौतिया डाह ही समझा।
एक दिन गर्भ के प्रभाव से सीता को दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं जिनेश्वर की पूजा करूं, शास्त्र श्रवण करू', मुनिराजों को दान हूँ। इस दोहद के पूर्ण न होने से उसे दुवेल और उदास देख कर राम ने कारण ज्ञात किया और बड़े समारोह के साथ उसका दोहद पूर्ण किया । एकदा सीता की दाहिनी आँख फरकने लगी। उसने राम के समक्ष भावी चिन्ता व्यक्त कर राम के कथनानुसार दान पूजा आदि का उपचार किया। सीता कलंक कथा प्रसंग एवं राम विकल्प तथा सीता का
अरण्य निष्काशन भावी प्रवल है। राम के अन्तःपुर मे और वाहर भी सीता के