________________
[ ५३ ]
राम का लंका प्रवेश सुग्रीव हनुमान और भामण्डलादि के साथ राम लक्ष्मण लंकानगरी में प्रविष्ट हुए। उनके स्वागत में सारा नगर अभूतपूर्व ढङ्ग से सजाया गया। राम पुष्पगिरि पर्वत के पास पद्मोद्यान मे जाकर सीता से मिले। राम के दर्शन से सीता का विरह दुःख दूर हुआ, देवों ने पुष्पवृष्टि की। सर्वत्र सीता सती के शील की प्रशंसा होने लगी। लक्ष्मण ने सीता का चरण स्पर्श किया, भाई भामण्डल, सुग्रीव, हनुमान आदि सवसे मिलने के पश्चात् गजारूढ़ होकर सीता, राम, लक्ष्मण रावण के भवन मे आये। सर्वप्रथम शान्तिनाथ जिनालय मे पूजन स्तवन करके शोक सन्तप्त रत्नाश्रव, सुमालि विभीपण, मालवन्त आदि को आश्वस्त किया। राम ने विभीपण को लंका का राज्य दिया। विभीपण ने सवको अपने यहीं बुलाकर खूब भक्ति की। सबने मिल कर राम का राज्याभिषेक करने की इच्छा व्यक्त की तो राम ने कहा- मुझे राज्य से प्रयोजन नहीं, भरत राज्य करता ही है। सीता के साथ राम और विशल्या के साथ लक्ष्मण लंका में सानन्द रहे। लक्ष्मण की अन्य सभी परिणीताओं को भी बुला लिया गया। राम लक्ष्मण के साथ सहस्रों विद्याधर पुत्रियों का पाणिग्रहण हुआ।
नारद मुनि द्वारा अयोध्या का वर्णन एक दिन नारद मुनि आकाश मार्ग से घूमते हुए लंका आये । राम ने उन्हें अयोध्या से आये ज्ञातकर भरत के कुशल समाचार पूछे। नारद ने कहा-और तो सब कुशल है पर सीताहरण और लक्ष्मण के संग्राम में मूच्छित होने के बाद विशल्या को अयोध्या से ले जाने