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[ ४५ ] सहसविजय ने मेरे पर शक्ति प्रहार किया जिससे मैं मूर्छित होकर अयोध्या के उद्यान में जा गिरा। भरत ने मुझे किसी विशिष्ट जल के प्रभाव से सचेत कर उपकृत किया, उस जल की माहात्म्य कथा आपको बतलाता हूँ।
भरत के मामा द्रोणमुख की नगरी में महामारी का उपद्रव था, कोई भी उपाय से रोग शान्त नहीं होता था। द्रोण राजा भी रुग्ण था, जव वह स्वस्थ हो गया तो भरत ने उसे पूछा कि आपके यहाँकी बीमारी कैसे गई? तो उसने कहा-मेरी पुत्री विशल्या अत्यन्त पुण्यवान है, उसके गर्भ में आते ही माता का रोग ठीक हो गया, स्नान करते धायके उसके स्नानजल के छीटे लग गए तो स्नानजल प्रभाव से वहभी निरोग हो गई। जब इस बात की नगर में ख्याति हुई तो उसका स्नानजल सभी नागरिकों ने ले जाकर स्वास्थ्य लाभ किया। भरत ने मन.पर्यवज्ञानी मुनिराज के पधारने पर इस आर्यजनक चमत्कार का कारण पूछा। मुनिराज ने कहा-विजय पुण्डरीकणी क्षेत्र के चक्रनगर मे तिहुणाणंद नामक चक्रवर्ती राजा था, जिसके अनंगसुन्दरी नामक अत्यन्त सुन्दर पुत्री थी। एक बार जब वह उद्यान मेक्रीड़ा कर रही थी, तो प्रतिष्ठनगरी के राजा पुणवसु विद्याधर ने उसे अपहरण कर लिया। चक्रवर्ती के सुभटों ने प्रबल युद्ध किया जिससे वह जर्जर हो गया। उसका विमान भग्न हो जाने से वह अनंगसुन्दरी डंडाकार अटवी में जा गिरी। उस भयानक जंगल मे अकेली रहते हुए उसने अष्टम और दशम तप प्रारम्भ कर दिया। वह पारणे के दिन फलाहार कर फिर तप प्रारम्भ कर देती। इस प्रकार तीन सौ वर्ष पर्यन्त उसने कठिन तप किया। अन्त में जब उसने संलेखण पूर्वक चौविहार अनशन ले लिया। मेरु पर्वत के