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[ ४३ ] है और मैंने न्याय का पक्ष लिया है, तुम अन्यायी हो जो परस्त्री को हरण कर लाये। अब भी मेरा कथन मानकर सीता लौटा दो! । रावण विभीषण पर क्रुद्ध होकर उसके साथ युद्ध करने लगा। इन्द्रजित्
से लक्ष्मण, कुम्भकरण से राम और दूसरे योद्धाओं से अन्यान्य सुभट भिड़ गये। थोड़ी ही देर में इन्द्रजित्, मेघवाहन और कुम्भकरण को नागपाश से बांधकर वानर कटक में ला रखा। रावण ने विभीषण पर जब त्रिशूल फैकी तो लक्ष्मण के वाण ने उसे निष्फल कर दिया
और स्वयं गजारूढ़ होकर रावण से युद्ध करने लगा। रावण ने अग्निज्वालायुक्त शक्ति का प्रहार किया, जिसकी असह्य वेदना से लक्ष्मण मूछित होकर धराशायी हो गया।
राम ने भाई को भूमिसात् देखते ही रावण के साथ धनघोर संग्राम छेड़ दिया। राम ने उसके छत्र, धनुष और रथ को छिन्नभिन्न करके कठोर प्रहार किये जिससे लंकापति भयभीत होकर कांपने लगा । नये-नये वाहनों पर युद्ध करने पर भी राम ने उसे ६ वार रथरहित कर दिया और अन्त में धिक्कार खाता हुआ भग कर लंकानगरी में प्रविष्ठ हो गया। उसके हृदय में लक्ष्मण को मारने का अपार हर्ष था।
लक्ष्मण हित राम का शोक राम जब लक्ष्मण के पास आये तो उसे मृतकवत् देखकर भ्रातृ विरह के असह्य दुःख से मूच्छित हो गये। जब उन्हें शीतल जल से संचेत किया तो नाना प्रकार से करुण-क्रन्दन और विलाप करते हुए उसके गुणों को स्मरण कर अन्त में हताश हो गये और सबको अपने