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[ ४१ ] से कानों में किसी का शब्द तक सुनाई नहीं पड़ता था, सैन्य पदरज से सर्वत्र अन्धकार-सा व्याप्त था। नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित बानरों ने रावण की सेना के छक्के छुड़ा दिए। राक्षसों को भागते देख हत्थ, विहत्थ आ डटे, जिन्हें राम द्वारा प्रेरित नील और नल ने मार भगाया। सूर्यास्त होते ही युद्ध बन्द हो गया।
विषम युद्ध और शक्ति हेतु लक्ष्मण का देवाराधन दूसरे दिन युद्ध करते हुए जव वानर सेना के पैर उखड़ने लगे तो पवन पुत्र हनुमान तुरन्त रणक्षेत्र में कूद पड़ा। राजा बजोदर ने हनुमान का कवच व सन्नाह भेद डाला तो हनुमान ने उसका खग द्वारा शिरोच्छेद कर दिया। रावण के पुत्र जंबुमालि को जव हनुमान मारने लगा तो कुम्भकरण त्रिशूल लेकर दौड़ा। उसे आते देख चन्द्ररश्मि, चन्द्राभ, रत्नजटी और भामण्डल आगे आये जिन्हें दर्शनावरणी विद्या से कुम्भकरण ने निद्रा घूमित कर दिया। सुग्रीव ने पडिबोहिणी विद्या से उन्हें जागृत कर दिया जिससे उन्होंने युद्धरत होकर कुम्भकणे को विकल कर दिया। इन्द्र जित् जब आगे आया तो सुग्रीव भामण्डल उससे आ भिड़े। उसके द्वारा प्रक्षिप्त कंकपत्र को सुग्रीव ने छेद डाला। मेघवाहन भामडल से युद्ध करने लगा। उसने भामण्डल को, इन्द्रजित् ने सुग्रीव को तथा कुंभकरण ने हनुमान को नागपाश से , बांध लिया। विभीषण ने राम लक्ष्मण से कहा-रावण के पुत्रों ने हमारे प्रधान वीरों को बाँध लिया, राक्षसों का पलड़ा भारी हो रहा है। राम ने अंगद को संकेत किया तो वह कुंभकरण से युद्ध करने लगा। इतने ही में हनुमान ने अपना नागपाश तोड़ डाला। लक्ष्मण और