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[ ३६ ] विजय योग में शुभ शकुनों से सूचित होकर राम ने सैन्य सहित लंका की ओर प्रयाण किया। रामचन्द्र तारागण से वेष्टित चन्द्र की भांति सुशोभित थे। सुग्रीव, हनुमान, नल, नील, अंगद की सेना का चिन्ह वानर था। विरोहिय के हार, सिंहरथ के सिंह, मेघकान्ति के हाथी, ध्वज एव गज, रथ, घोड़ा, आदि के चिन्ह थे। उन चिन्हयुक्त विमानों में बैठकर वे समुद्र तट पर पहुंचे। एक राजा ने युद्ध में आधीनता स्वीकार कर लक्ष्मण को चार कन्याएँ समर्पित कर दी। हंसद्वीप जाने पर राजा हंसरथ ने राम की बड़ी सेवा की। इधर भामंडल को बुलाने के लिए दूत भेजा गया।
हंसद्वीप प्रसंग और लङ्का प्रयाण रामचन्द्र की सेना जब हंसद्वीप पहुंची तो लंका में भगदड़ मच गई। रावण ने भी रणभेरी वजा कर सेना एकत्र की। विभीषण ने रावण को युद्ध मे न उतरनेकी समयोचित शिक्षा दी किन्तु उसे किसी प्रकार भी सीता को लौटाना स्वीकार नहीं था। विभीषण की शिक्षाओं ने रावण की कोपाग्नि में घृत का काम किया। जब दोनों में परस्पर युद्ध छिड गया, तो कुम्भकरण ने बीच में पड़कर दोनों को अलग किया। विभीषण अपनी तीस अक्षौहिणी सेना लेकर हंसद्वीप गया। वानर सेना में खलबली मचने से राम अपने धनुप और लक्ष्मण रविहास खङ्ग को धारण कर सावधान हो गए। विभीषण ने राम के पास दूत भेज कर कहलाया कि सीता के विषय में हित शिक्षा देते हुए मेरा रावण से विरोध हो जाने से मैं आपका दासत्व स्वीकार करने आया हूं। राम ने मन्त्री लोगों की सलाह लेकर विभीपण को सम्मानपूर्वक अपने पास बुला लिया जिससे हनुमान आदि