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[ ३७ ] से पारणा किया। हनुमान ने उसे स्कन्ध पर बैठा कर ले जाने का कहा पर सीता ने पर पुरुष स्पर्श अस्वीकार करते हुये अपना चूडामणि चिन्ह स्वरूप दिया और शीघ्र राम को आने की प्रार्थना पूर्वक हनुमान को विदा कर दिया ताकि मन्दोदरी की शिकायत से रावण हनुमान के प्रति कुछ उपद्रव न करे।
मेघनाद द्वारा नागपाश प्रक्षेप और हनुमान बन्धन हनुमान सीता को नमस्कार करके रवाने हुआ तो रावण के भेजे हुये राक्षसों ने उसे घेर लिया। उसने वृक्षो को उखाड़ कर प्रहार करते हुये राक्षसों को भगा दिया और वानर रूप से लोगों को त्रास पहुंचाता हुआ रावण के निकट आया। रावण ने लंका को नष्ट करते देख सुभटो को तैयार होने की आज्ञा दी। इन्द्रजित और मेघनाद सेना सहित हनुमान से युद्ध करने लगे। हनुमान ने अपनी सेना को भगते देखा तो स्वयं युद्ध करने लगा। जब राक्षस लोग भगने लगे तो इन्द्रजित ने तीरों की बौछार लगा दी, हनुमान ने उन्हें अर्द्धचन्द्र वाण से छिन्न कर दिये। इन्द्रजित् द्वारा प्रक्षिप्त शक्ति को जब हनुमान ने लघु-लाघवी कला से निष्फल कर दिया तो उसने नागपाश से हनुमान को बाँध कर रावण के समक्ष प्रस्तुत किया और कहा कि इसने सुग्रीव की प्रेरणा से दूत रूप में लंका में सीता के पास आने से पूर्व बजमुख राजा को मार कर लंकासुंदरी ले ली एवं पद्मवन को नष्ट कर लंका में उपद्रव मचाकर लोगों को त्रस्त किया है, अब इसे क्या दंड दिया जाय ?
हनुमान रावण विवाद और लंका में उपद्रव रावण ने उसके अपराध सुन कर कहा-तुम पवनंजय-अंजना