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[ १४ ] उसका आभार स्वीकार किया। बजजंघ ने अन्न पानी का संचय करके नगर के द्वार वन्द कर लिये। सीहोदर की सेना ने आकर नगर को घेर लिया। सीहोदर ने दूत भेज कर वनजंघ को कहलाया कि तुम मुझे नमस्कार करो और राज भोगो। पर वनजंघ ने कहा-मैं अपना नियम भंग नहीं कर सकता। इसीलिये दोनों राजा एक वाहर और एक भीतर अकड़े बैठे है, यही कारण है कि यह देश अभीअभी सूना हो गया है। ऐसा कह कर वह व्यक्ति जाने लगा तो राम ने उसे कटि का कंदोरा इनाम देकर विदा किया।
राम की वज्रजंघ की सहायता राम लक्ष्मण स्वधर्मी वन्धु वनजंघ की सहायता करने के उद्देश्य से दशपुर के बाहर चन्द्रप्रभ जिनालय में आये और जिन वंदनान्तर लक्ष्मण नगर मे जाकर राजा से मिला। राजा ने उसे भोजन करने को कहा तो लक्ष्मण के यह कहने पर कि मेरे भ्राता नगर के बाहर है, राजाने तैयार मिष्टान्न भोजन भेज दिया। भोजनान्तर लक्ष्मण सीहोदर के पास गया और उससे कहा कि मैं भरत का भेजा हुआ दूत हूं, तुमने अन्यायपूर्वक वनजंघ पर घेरा डाल रखा है, अब भरत की आज्ञा से विरोध त्याग दो, अन्यथा काल कृतान्त के हस्तगत हुआ समझो। सीहोदर ने क्रुद्ध होकर सुभटों को संकेत किया । लक्ष्मण के साथ युद्ध छिड़ गया, अकेले वीर ने सीहोदर की सेना को परास्त कर सीहोदर को बांधकर रामके सामने उपस्थित किया, रामने वनजंघ को आधा राज्य दिला कर उसका मेल करा दिया और उपकारी विजु को रानी के कुण्डल दिलाये। सीहोदर ने ३०० कन्याएँ एवं वनजंघ ने