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[ ३२ ] रावण की भी आधीनता स्वीकार नहीं की। उनके वैराग्य से दीक्षित हो जाने पर सुग्रीव राजा हुए । एक बार कोई विद्याधर सुग्रीव का रूप करके तारा के पास आया । तारा ने उसकी चेष्टाओं से कपट जानकर मन्त्री को सूचित किया । कपट-सुग्रीव राज्यासन पर जा बैठा। असली सुग्रीव के आने पर दोनों में भिडंत हो गई । मन्त्री ने असलो राजा को न पहिचानकर दोनों को मना किया। रानी के शील रक्षार्थ वालि के पुत्र चन्द्ररस्मि को प्रधान स्थापित किया। असली सुग्रीव हनुमान के पास सहायतार्थ गया पर उसे भी दोनों को एकसे देखकर सन्देह हो गया अतः अब आपके शरणागत है। राम ने कहा-तुम निश्चिन्त रहो, तुम्हारा , काम हम कर देंगे, यह साधारण वात है। पर हम अभी दुखी हो रहे है क्योंकि सीता को कोई दुष्ट छल करके अपहृत कर ले गया है, यदि तुम्हारे से कुछ बन सके तो अनुसन्धान लगाओ। सुग्रीव ने कहामैं एक सप्ताह में सीता का पता न लगा सका तो अग्निप्रवेश कर जाऊंगा।
सुग्रीव नामधेयी विद्याधर का अन्त राम प्रसन्न होकर सुग्रीव के साथ किष्किन्धा आए। नकली सुग्रीव ने युद्ध में उतरकर असली सुग्रीव को गदा के प्रहार से मूच्छित कर दिया। फिर सचेत होकर सुग्रीव ने राम से कहा-मैं आपके पास ही था, आपने मेरी सहायता नहीं की ? राम ने कहा-मैं भी तुम दोनों में असली नकली का निर्णय न कर सका, अब मैं अकेला ही तुम्हारे शत्रु को मारूँगा। राम के तेज प्रताप से उसकी विद्या नष्ट हो गई और उसे अपने प्रकृत रूप में लोगों ने पहचान लिया कि यह साहसगति विद्याधर है । सुग्रीव के साथ उसका युद्ध होने लगा। वानर