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[ ३३ ] दल भग्न होते देख राम ने उसे पकड़कर यमपुरी पहुंचा दिया । सुग्रीव ने हर्षित होकर राम लक्ष्मण को उद्यान में ठहराया और अश्वरत्न आदि भेंट कर स्वयं तारा रानी के पास जाने के पश्चात् रामसे की हुई अपनी प्रतिज्ञा विस्मृत हो गया। सुग्रीव की चन्द्रप्रभादि तेरह कन्याएँ पति वरने की इच्छा से राम के आगे आकर नाटक करने लगी। राम तो सीता के विरह में दुखी थे अतः उन्हें आँख उठाकर भी नहीं देखा। राम ने लक्ष्मण से कहा-कार्य सिद्ध होने पर सुग्रीव प्रतिज्ञाभ्रष्ट और निश्चिन्त होकर बैठ गया। लक्ष्मण ने सुग्रीव के पास जाकर उसे करारी फटकार वताई। सुग्रीव क्षमायाचना-पूर्वक राम के पास आया और उन्हें आश्वस्त करके सीता की शोध के लिए चल पडा । भामण्डल को भी सीताहरण का सम्वाद भेज दिया गया।
सुग्रीव द्वारा सीता-शोध सुग्रीव अपने सेवकों के साथ नगर, पहाड़, कन्दराओं मे खोज करता हुआ कम्बुशैल पर्वत पर पहुंचा तो उसने रत्नजटी को कराहते हुए देखा । उसने सुग्रीव से कहा-जव मैंने रावण को सीता को हरण कर ले जाते देखा तो उसका पीछा करके ललकारा। रावण ने मेरी विद्याएँ छेदन कर मुझे अशक्त कर दिया। अव तो राम के पास जाकर खबर देने में भी असमर्थ हूँ। सुग्रीव उसे उठाकर राम के पास ले गया। उसने सीता की खबर सुनाकर रामचन्द्र को प्रसन्न कर दिया। राम ने उसे अंग के सारे आभूषण देकर पूछा कि लंकानगरी कहाँ है ? यह हमें बतलाओ।