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[ ३१ ] सकती है ? तुम्हारे योग्य यह कार्य है ? मन्दोदरी ने कहा-तुम्हारा कथन यथार्थ है पर पति की प्राण-रक्षा के लिए अयुक्त कार्य भी करना पड़ता है ! रावण ने भी स्वयं आकर सीता को बहुत समझाया । नाना प्रलोभन, भय दिखाये पर सीता ने उसे निभ्रंछना कर निकाल दिया। रावण ने सिंह, वैताल, राक्षसादिरूप विकुर्वण करके उसे डराने की चेष्टा की पर उसकी सारी चेष्टाएँ निष्फल गई। प्रातःकाल जव विभीषण को ज्ञात हुआ तो उसने सीता को आश्वासन देकर कहा कि-मैं रावण को समझाकर तुम्हें राम के पास भिजवा दूंगा । उसने रावण को इस परनारीहरण के अनर्थ से बचने की प्रार्थना की पर रावण ने एक न सुनी। रावण सीता को पुष्प-विमान में बैठाकर पुष्पगिरि स्थित सुन्दर उद्यान ले गया और नृत्य, गीत, वाजिनादि के आयोजन द्वारा उसे प्रसन्न करने की चेष्टा की। सीता ने स्नान भोजनादि त्यागकर एकान्त धारण कर लिया। उसने अभिग्रह किया कि जब तक राम लक्ष्मण के कुशल समाचार न मिले, अन्न का सर्वथा त्याग है। नर्तकी ने जब रावण से यह समाचार कहा तो रावण सीता के विरह मे विक्षिप्त चेष्टाएँ करने लगा।
राम-सुग्रीव मिलन प्रसंग जब किष्किन्धा नरेश सुग्रीव ने खरदूषण को मारनेवाले राम, लक्ष्मण की वीरता का यशोगान सुना तो वह अपना दुःख दूर करने के लिए पातालपुरी आया। राम द्वारा कुशल समाचार पूछने पर जम्वूनन्द मन्त्री ने कहा-ये किष्किन्धापति आदित्यरथ के पुत्र महाराजा सुग्रीव है । इनके ज्येष्ट भ्राता बालि बड़े वीर और मनस्वी थे, जिन्होंने