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[ २२ ] म्लेच्छपल्ली में उत्पन्न हुआ। उदित, मुदित मुनिराज समेतशिखर यात्राथ जाते हुए म्लेच्छपल्ली के मार्ग से निकले तो वह म्लेच्छ इन्हें खड्ग द्वारा मारने को प्रस्तुत हुआ। मुनि-भ्राताओं ने सागारी अनशन ले लिया। पल्लीपति ने करुणापूर्वक म्लेच्छ द्वारा मारने से मुनिराजों को बचा लिया। ममेतशिखर पहुंच कर मुनिराजों ने अनशन आराधना पूर्वक देह त्यागा और प्रथम देवलोक में देव हुए। म्लेच्छ ने संसार भ्रमण करते हुए मनुष्य भव पाया और तापसी दीक्षा लेकर अज्ञान तप किये जिससे दुष्ट परिणामी ज्योतिषी देव हुआ। उदित, मुदित के जीव अरिष्टपुर नरेश प्रियवन्धु की रानी पद्माभाके कुक्षि से उत्पन्न हुए। ब्राह्मण का जीव भी राजा की दूसरी रानी कनकाभा के उदर से अनुद्धर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रियबन्धु राजाने बड़े पुत्र को । राज देकर दीक्षा ले ली और यथासमय स्वर्गवासी हुए। अनुधर दोनों : भ्राताओं के प्रति मात्सर्य धारण कर देश को लूटने लगा। राजा द्वारा . निर्वासित होकर उसने तापसी दीक्षा लेली । रत्नरथ और विचित्ररथ भो दीक्षा लेकर प्रथम देवलोक मे गये और वहांसे च्यव कर सिद्धारथपुर के राज क्षेमंकर के यहाँ विमला रानी की कुक्षिसे देशभूषण, कुलभूषण नामक पुत्र हुये। जिन्हें राजा ने विद्योपार्जनार्थ गुरुकुल में भेज दिया पीछे से रानी के कमलूसवा नामक पुत्री हुयी। राजकुमार जब कलाभ्यास करके लौटे तो कमलूसवा को देख कर इस अनुमान से कि हमारे लिये पिताजी किसी राजकुमारी को यहां लाये हैं, उसके प्रति आसक्त हो गये। थोड़ी देर में जव विरुदावली सुन कर उन्हें अपनी ही वहिन होने का ज्ञात हुआ तो दोनों ने विरक्त चित्त से सुव्रतसूरि के पास चारित्र ग्रहण कर लिया। राजा क्षेमंकर पुत्र वियोग से दुःखी'