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[ ५२ ] शिष्य आलमचन्द की भी कृतियां मिलती है। आसकरण की परम्परा में कस्तूरचन्द गणि की रची 'ज्ञातासूत्र वृत्ति' उपलब्ध है।
कवि के अन्य शिष्यों में सहजविमल, महिमासमुह, सुमतिकीनि, माईदास आदि का उल्लेख प्रशस्तियों में पाया जाता है। आलमचन्द की परम्परा मे यति चुन्नीलाल कुछ वर्ष पूर्व बीकानेर में विद्यसान थे। हैदरावाद राज्य के सेवली स्थान में रामपाल नामक यति समयसुंदरजी की परम्परा में अब भी विद्यमान है। इनका शिष्यपरिवार खूब विस्तृत होकर फूला-फला। उसमे सैकड़ों साधु यति हो गए, जिनमें कई अच्छे गुणी व्यक्ति थे। भारत के सभी प्राचीन जैन ज्ञान-भण्डारों में इनकी कृतियां पाई जाती है और जहाँ भी इनकी शिष्य-संतति रही हो वहीं अनुसंधान करने पर भी नवीन कृतियाँ उपलब्ध होने की संभावना है।
साहित्य - उपर्युक्त चर्चा के अन्तर्गत कवि की रचनाकालउल्लिखित प्रमुख रचनाओ का यथास्थान निर्देश-किया गया है। इन्होने साठ वर्ष निरन्तर साहित्य-माधना करते हुए भारतीय वाडमय को समृद्ध वनाया। स्तवन गीत आदि इनकी लघु कृतियां सैकड़ो की संख्या में है जो जहाँ कहीं भी खोज की जाय, मिलती ही रहती है। इसी से लोकोक्ति है कि 'समयसुंदर रा गीतड़ा, कुंभे राणे रा भीतड़ा, (अथवा भीतों का चीतड़ा) अर्थात् कविवर की रचनाएँ अपरिमित है। इनकी समस्त ज्ञात रचनाओ की सूची यहाँ एकत्र दी जाती है, पुस्तक के आगे, जहाँ ज्ञात है, उसकी रचना का विक्रमीय संवत् और रचना-स्थान तथा वर्तमान प्राप्ति स्थान दे दिया गया है