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कैकेयी वर कथा प्रसंग एक बार नारद मुनि ने हमारे पास आकर कहा कि लंकापति ने नैमित्तिक से पूछा कि मैं सर्वाधिक समृद्धिशाली हूं, देव दानव मेरी सेवा करते है तो ऐसा भी कोई है जिससे मुझे खतरा हो ? नैमित्तिक
ने कहा-दशरथ के पुत्रों द्वारा जनक सुता के प्रसंग से तुम्हें बड़ा __भय है। रावण ने तुरन्त विभीषण को बुला कर आज्ञा दी कि दशरथ और जनक को मार कर मेरा उद्वेग दूर करो! अतः अब आप सावधान रहें ! स्वधर्मी के सम्बन्ध से मुझे व जनक को सावधान कर नारद मुनि चले गये। मैने मन्त्री की सलाह से देशान्तर गमन किया और मेरे स्थान पर लेप्यमय मूर्ति बैठा दी गयी। जनक ने भी आत्म रक्षार्थ ऐसा ही किया। विभीपण ने आकर दोनों की प्रतिकृतियां भग कर दी, हम दोनों का भार उतर गया।
मैं देशाटन करता हुआ कौतुकमंगल नगर में पहुंचा। वहाँ शुभमति राजा की भार्या पृथिवी की पुत्री कैकयी का स्वयंवर मण्डप बना हुआ था, बहुत से राजाओं की उपस्थिति में मैं भी एक जगह छिप कर बैठ गया। कैकयी ने सबको छोड़ कर मेरे गले में वरमाला डाली जिससे दूसरे सव राजा क्रुद्ध होकर चतुरंगिनी सेना सहित युद्ध करने लगे। शुभमति को भागते देख कर मैं रथारूढ़ हुआ, कैकयी सारथी बनी और रणक्षेत्र में बाणो की वर्षा से समस्त राजाओं को परास्त कर कैकयी से विवाह किया। उस समय मैंने कैकयी को आग्रहपूर्वक वर दिया था जिसे उसने धरोहर रखा। आज वह वर मांग रही है कि भरत को राज्य दो। पर तुम्हारी उपस्थिति में यह