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[ ११ ] व सारे प्रजाजन अश्रुपूर्ण नेत्रों से साथ चले। राम का विरह असह्य था, राज परिवार, रानियां और महाजन लोग सभी व्याकुल होकर रुदन कर रहे थे। सबके मुख पर राम को निकालने वाली कैकयी के प्रति रोप और घृणा के भाव थे। राम के वियोग से दुःखी अयोध्यावासियों का दुःख देखने में असमर्थ होकर भगवान अंशुमाली भी अस्ताचल की ओर चले। राम सीता और लक्ष्मण ने जिनालय में आकर रानिवास किया। माता पिता मिलने आये जिन्हें रवाना करके कुछ विश्राम किया और पिछली रात में उठ कर जिनवन्दन करके धनुष बाण धारण कर पश्चिम की ओर रवाना हो गये। विरहातुर सामन्त लोग पैर खोजते हुए आ पहुंचे और रामचन्द्रजी की सेवा करते हुए कितने ही ग्राम नगर उल्लंघन किये। जब गंभीरा तट आया तो वस्ती का अन्त जान कर सामन्तादि को वापस लौटा दिया और सीता और लक्ष्मण के साथ रामचन्द्र नदी पार होकर दक्षिण की ओर चले।
सामन्तादि भारी मन से वापस लौट कर जिनालय में ठहरे। तत्र विराजित मुनिराज से कितनों ने ही संयम व व्रतादि ग्रहण किये। महाराज दशरथ ने भूतसरण गुरु के पास दीक्षा ले ली और कठिन तप करने में लग गये।
भरत राम सम्मिलन तथा भरत का आज्ञा-पालन पुत्रों के वनवास और पति के दीक्षित होने से खिन्न चित्त सुमित्रा व अपराजिता बड़ा दुःख करने लगी। उन्हें फ्लान्त देख कर कैकयी ने भरत से कहा-बेटा। राम लक्ष्मण को बुला कर लाओ,