________________
[ २ ] उसने मुनिराज को निर्दोष घोषित कर दिया। लोगों में सर्वत्र हपे व्याप्त हो गया । वेगवती ने धर्म श्रवण कर संयम स्वीकार किया और आयुष्यपूर्ण कर प्रथम देवलोक मे उत्पन्न हुई।
वेगवती और मधु-पिंगल भरतक्षेत्र में मिथिलापुरी नामक समृद्धनगरी थी जहाँ दानी और तेजस्वी जनक राजा राज्य करते थे। उनकी भार्या वैदेही की कुक्षि । में वेगवती का जीव-कन्या के रूप में व एक अन्य जीव पुत्र के रूप मे उत्पन्न हुए। पूर्वभव के वैरवश एक देव ने पुत्र को हरण कर लिया। श्रेणिक राजा द्वारा वैर का कारण पूछने पर गौतम स्वामी ने कहा कि - चक्रपुर के राजा चक्रवर्ती और उसकी रानी मयणसुन्दरी की पुत्री अत्यन्त सुन्दरी थी। लेखशाला में अध्ययन करते हुए पुरोहित के पुत्र मधुपिंगल से उसका प्रेम हो गया। मधुपिंगल उसे विर्दभापुरी ले गया और वे दोनों वहाँ आनन्दपूर्वक रहने लगे। कुछ दिनों में मधु पिगल विद्या विस्मृत होकर धन के विना दुःखी हो गया। राजकुमार अहिकुण्डल ने जव सुन्दरी को देखा तो वह उसे अपने महलों में ले गया । मधुपिंगल ने जब अपनी स्त्री को नहीं देखा तो उसने राजा के पास जाकर पुकार की कि मेरी स्त्री को कोई अपहरण कर ले गया।
आप उसकी शोधकर मुझे प्राप्त कराने की कृपा करें। राजकुमार के किसी पुरुप ने कहा-मैंने उसे पोलासपुर में साध्वी के पास देखा है। मधुपिंगल उसे खोजने के लिए पोलाशपुर गया और न मिलने पर फिर राजा के पास आकर पुकार की और झगड़ा करने लगा तो राजा ने उसे पिटवा कर नगर के बाहर निकाल दिया। मधुपिंगल