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धर लोगों ने प्रसन्न होकर अठारह कन्याओं का सम्बन्ध किया। राम सीता का पणिग्रहण हुआ, सब लोग अपने-अपने स्थान लौटे। राजा दशरथ अपने पुत्रादि परिवार सह जनक द्वारा विपुल समृद्धि पाकर अयोध्या लौटे।
महाराजा दशरथ की विरक्ति महाराजा दशरथ शुद्ध श्रावक धर्म पालन करते हुए काल निर्गमन करते थे। एक वार जिनालय में उन्होंने अठाई महोत्सव प्रारम्भ किया तो समस्त राणियों को उत्सव दर्शनार्थ बुलाया गया। सब को वुलाने के लिए अलग-अलग व्यक्ति भेजे गये थे। सभी रानियां आकर उपस्थित हो गई। पट्टरानी के पास बुलावा नहीं जाने से वह कुपित होकर आत्मघात करने लगी। दासी का कोलाहल सुनकर राजा स्वयं पहुंचा और रानी से कहा ये क्या अनर्थ कर रही हो ? इतने मे ही रानी को बुलाने के लिए भेजा हुआ वृद्ध पुरुष आ पहुंचा। उसके देर से पहुंचने का कारण वृद्धावस्था की अशक्ति ज्ञात कर राजा के मन मे समय रहते आत्महित कर लेने की तमन्ना जगी। इसी अवसर पर उद्यान मे सर्वभूतहित नामक चार ज्ञानधरी मुनिराज समौसरे । राजा सपरिवार मुनिराज को वन्दनार्थ गये। उनकी धर्मदेशना श्रवण कर राजा का हृदय वैराग्य से ओतप्रोत हो गया और वे घर आकर चारित्र ग्रहण करने के लिये उपयुक्त अवसर देखने लगे।
भामंडल की आत्म-कथा जब भामण्डल ने सुना कि सीता का राम के साथ विवाह हो गया तो वह अपने को अधन्य मानने लगा और जिस किसी प्रकार