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[ ३६ ] सवत सोल चिमाल मई रे, चैत्र मास वलि चउथ बुधवार रे । जिनचंद्रसूरि यात्रा करी रे, चतुर्विध श्रीसघ परिवार रे ॥ ८॥
अकवर के आमन्त्रण पर लाहोर-यात्रा-वि० १६४७ मे सम्राट अकबर ने जैन धर्म का विशेष वोध प्राप्त करने के उद्देश्य से. मन्त्री कमचंद्र द्वारा जिनचन्द्रसूरि का कड़ी धूप में आना कष्टकर जान, उनके मुख्य शिष्य वाचक महिमराज को बुलाने के निमित्त दो शाही पुरुषों को विज्ञप्तिपत्र देकर सूरिजी के पास भेजा। उन्होंने विज्ञप्तिपत्र पाते हो महिमराज को छ. अन्य साधुओं के साथ लाहोर भेजा। इनमें हमारे कवि समयसुंदर भी एक थे, जिन्होंने 'श्री जिनसिंहसूरि अष्टक' में इस यात्रा का वर्णन किया है
एजु प्रणम्या श्री शातिनाथ गुरु शिर घों हाथ, समयसुदर नाथ चाले नीकी वरियाँ । यनुक्रमि चलि आए सीरोही मे सुख पाए सुलताण मनि माए देखत बँखरियाँ । जालोर मेदिनातट पइसारउ कियउ प्रकट डीडवाणइ जीते भट जयसिरि वरियाँ । रिणी तई सरसपुर आवत फिरोजपुर लघत नदी कसूर मार्नु जइसी दरियाँ ॥२॥ एजु बावत सुशोभ लीनी लाहोर बधाई दीनी मत्री कु मालिम कीनी कहइ एसाउ पथियाँ। मानसिंह गुरु आए पातसाह कुं सुणाए वाजिन प्रिंधुं वजाए दान टीयइ दुथियाँ ।