________________
सूत्र' का वीजक लिखा जो वाहड़मेर के यति श्री नेमिचन्द्र के पास है। १६७८ में आबू तीर्थ की यात्रा की। १६७६ में पाटण गए, किन्तु वहाँ मुगलों का उपद्रव होने से पालनपुर आए और वहीं चातुर्मास्य किया। इनका सहज विमल के पठनार्थ सं० १६७६, भाद्रपद कृष्ण ११ का लिखा 'पट्टाक्ली पत्र' हमारे संग्रह (बीकानेर) में है।
१६८१ का चातुर्मास्य जैसलमेर में हुआ और यहाँ इन्होंने 'वल्कलचीरी चउपई रचो और 'मौनेकादशी स्तवन २२ आदि जिन-स्तवन२३ वनाए। इसी वर्ष कार्तिक शुक्ल १५ को लौद्रवा की यात्रा की और संघपति थाहरूशाह२४ द्वारा निकाले गए शत्रुजय संघ में सम्मिलित हुए। सं० १६८२ में नागोर आए और 'शत्रुजय रास'२५ बनाया तथा तिवरी में 'वस्तुपाल-तेजपाल रास'२६ रचा। १६८३ में जैसलमेर में 'पडावश्यक वालावबोध' बनाया। इसी वर्ष में इनके रचे हुए दो अष्टक 'बीकानेर आदिनाथ स्तवन' और 'श्रावक व्रत कुलक' उपलब्ध हैं।
१६८४ का चातुर्मास्य लूणकरणसर में किया और 'दुरियर वृत्ति २७ की रचना की। यहां के संघ में पांच वर्षों से मनोमालिन्य था।
२२-बभयरलसार, समयसुन्दरकृति कुसुमाजलि आदि में प्रकाशित । २३-जैन-लेख-सग्रह, माग ३
२४. इनका पुस्तक-महार अव मी जैसलमेर में विद्यमान है। इनके सम्बन्ध में एक गीत यौर दो प्रशस्तियाँ प्राप्त है।
२५-~अभयरलसार, समयसुन्दर कृ० कु. में यादि में प्रकाशित । २६-~"जेनयुग' (मासिक, जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस, बम्बई )।