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[ ३२ ] पाडित्य और इनकी प्रतिभा का विकास व्याकरण, अलंकार, छंद, ज्योतिप, जैन साहित्य, अनेकार्थ आदि अनेक विषयों में दिखाई पड़ता है और प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, गुजराती, हिंदी, सिंधी तथा पारसी तक में इनकी लेखनी समान रूप से चलती है। इन्होने अनेक ग्रंथ रचकर भारतीय वाड्मय की वृद्धि की। साहित्य के ये अप्रतिम सेवक थे।
जन्मभूमि-कवि की मातृभूमि होने का गौरव मारवाड़ प्रान्त के सांचौर स्थान को प्राप्त है। यह सांचौर भगवान् महावीर के तीर्थ-रूप मे जैन साहित्य मे प्रसिद्ध है ।' कवि ने स्वयं अपनी जन्मभूमि का उल्लेख सपनी विशिष्ट भाषा-कृति 'सीताराम-चौपाई' में इन शब्दों में किया है
मुझ जन्म श्री साचोर माहि, तिहा च्यार मास रह्या उच्छाहि । विहा ढाल ए कीधी एकेज, कहै समयसुदर धरी हेज ।
कवि-रचित 'साचौर-मंडन-महावीर-स्तवन' का रचनाकाल सं० १६७७ है। यह ढाल भी सम्भवतः उसी समय रची गई होगी। इनके शिष्य वादी हर्पनंदन और देवीदास ने भी गुरुगीतों में कवि की जन्मभूमि का वर्णन इस प्रकार किया है
साच साचोरे सद्गुरु जनमिया रे । (हर्षनदन )
जन्मभूमि साचोरे जेहनी रे। ( देवीदास ) वंश-जैनों में तीन प्रसिद्ध जातियां हैं-श्रीमाल, ओसवाल, पोरवाड़। पुराने कवियो में इनकी विशेषताओं का वर्णन करते हुए
१-द्रष्टव्य-जैन-साहित्य-सशोधक, खड ३ यंक ३