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छक्खंडागमे संतकम्म
वि अघट्टिदीए* णिज्जरिदा वि द्विदी द्विदिमोक्खोव । एदेण अटुपदेण उक्कस्साणुकस्स-जहण्णाजहण्णट्ठिदिमोक्खो परूवेयव्वो । अणुभागमोक्खे अट्ठपदं । तं जहाओकड्डिदो उक्कड्डिदो अण्णपर्याड संकामिदो अधदिदि गलणाए णिज्जिण्णो वा अणुभागो अणुभागमोक्खो। एदेण अट्ठपदेण उक्कस्साणुक्कस्स-जहण्णाजहण्णअणुभागमोक्खो परूवेयन्वो। पदेसमोक्खे * अट्टपदं। तं जहा- अधदिदि गलणाए पदेसाणं णिज्जरा पदेसाणमण्णपयडीसु संकमो वा पदेसमोक्खो णाम । एसो वि उक्कस्साणुक्कस्स-जहण्णाजहण्णभेदेण यन्वो।।
णोकम्मदत्वमोक्खो सुगमो। अधवा, णोआगमदो दव्वमोक्खो मोक्खो मोक्खकारणं मुत्तो चेदि तिविहो । जीव-कम्माणं वियोगो मोक्खो णाम । णाण-दसणचरणाणि मोक्खकारणं । सयलकम्मवज्जियो अणंतणाण-दसण-वीरिय-चरण-सुहसम्मत्तादिगुणगणाइण्णो णिरामओ णिरंजणो णिच्चो कयकिच्चो मुत्तो णाम। एदेसि तिण्णं पि णिक्खेव-णय-णिरुत्तिअणुयोगद्दारेहि हेउगन्भेहि परूवणा कायव्वा । एवं कदे मोक्खाणुओगद्दारं समत्तं होदि । .
उत्कर्षणको प्राप्त हुई, अन्य प्रकृति में संक्रान्त हुई, और अधःस्थितिके गलनेसे निर्जराको भी प्राप्त हुई स्थितिका नाम स्थितिमोक्ष है। इस अर्थपदके आश्रयसे उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थितिमोक्षकी प्ररूपणा करना चाहिये। अनुभागमोक्षके सम्बन्ध में अर्थपदका कथन करते हैं। वह इस प्रकार है- अपकर्षणको प्राप्त हुआ, उत्कर्षणको प्राप्त हुआ, अन्य प्रकृति में संक्रान्त हुआ, और अधःस्थितिगलनके द्वारा निर्जराको भी प्राप्त हुए अनुभागको अनुभागमोक्ष कहा जाता है । इस अर्थपदके आश्रयसे उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य अनुभागमोक्ष की प्ररूपणा करना चाहिये । प्रदेशमोक्षके विषयमें अर्थपद कहते हैं। वह इस प्रकार है- अधःस्थितिगलनके द्वारा जो प्रदेशोंकी निर्जरा और प्रदेशोंका अन्य प्रकृतियोंमें संक्रमण होता है उसे प्रदेशमोक्ष कहा जाता है । इसको भी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्यके भेदसे ले जाना चाहिये।
नोकर्मद्रव्यमोक्ष सुगम है। अथवा नोआगमद्रव्यमोक्ष मोक्ष, मोक्षकारण और मुक्तके भेदसे तीन प्रकारका है । जीव और कर्मका पृथक् होना मोक्ष कहलाता है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र ये मोक्षकारण हैं। समस्त कर्मोसे रहित; अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्तवीर्य, चारित्र,
ख और सम्यक्त्व आदि गुणगणोंसे परिपूर्ण; निरामय, निरंजन, नित्य और कतकत्य जीवको मक्त कहा जाता है। इन तीनोंकी ही प्ररूपणा हेतुर्गाभत निक्षेप, नय और निरुक्ति अनुयोगद्वारोंसे करना चाहिये । ऐसा करनेपर मोक्ष-अनुयोगद्वार समाप्त होता है ।
* ताप्रती · अवट्ठिदा वि ' इति पाठः। O ताप्रतौ 'वि द्विदी ए (ट्ठि) दिमोक्खो' इति पाठः ।
४ अ-का त्योः 'अणुभागमोक्खो,' ताप्रती ' अणुभागमोक्खो (खे ) ' इति पाठः। अ-ताप्रत्योः अवटिदि' इति पाठः । *काप्रतौ 'पदेसमोक्खो' इति पाउ। अ-ताप्रत्योः 'अवट्रिदि' इति पाठः।
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