Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
प्रथमा
के समान, अद्भुतः = आश्चर्यकारी, तुङ्गः = अत्यधिक ऊँचा, महोज्ज्वलः = दैदीप्यमान स्वच्छ धवलवर्णीय, भूपतेः = राजा
का, प्राकारः = कोट. भाति स्म = शोभायमान हो रहा था। श्लोकार्थ - राजगृह के राजभवन की शोभा एवं सुरक्षा के प्रतीक राजा
का कोट अपने शिखरों से मानों आकाश को छू रहा था आश्चर्य उत्पन्न करने वाला अत्यंत स्वच्छ दैदीप्यमान ऊँचाई
युक्त था। जो शोभायमान होता था। उच्चहर्यसमुद्दिव्यत्पुरं यत्र महाधनाः । पौराः प्रवीणा गुणिनः स्वधर्मनिपुणा बभुः ||६५।। अन्वयार्थ · (तत् = वह), पुरम् = राजगृह नगर, उच्चहर्यसमुद्दिव्यत् =
ऊँचे-ऊँचे महलों की धवलिम चमक से युक्त, (आसीत् = था), यत्र = जिनमें महाधनाः = विपुल धन के स्वामी. प्रवीणाः = प्रचुर, गुणिनः = गुणों से युक्त्त, स्वधर्मनिपुणा: = अपने धर्माचरण के पालन में कुशल. पौराः = नगरवासी जन, बभुः
= सुशोभित थे। श्लोकार्थ - राजगृह नगर ऊँचे-ऊँचे चमकते-चमकते प्रासादों-महलों
से युक्त था और उन महलों में विपुल धन वैभव के स्वामी. सद्गुणी, चतुर, अपने-अपने धर्म कर्त्तव्य के परिपालन के होशियार नगर निवासी जन रहते हुये शोभा को प्राप्त हो रहे
थे।
सुन्दर्यः सुन्दराकाराः शराद्विधुनिभाननाः ।
गुणलक्षणसम्पन्ना विरेजुर्यत्र निर्मलाः ।।६६।। अन्वयार्थ - यत्र = जहाँ, सुन्दराकाराः = सुन्दर-सुगठित आकार वाली,
शरविधुनिभाननाः = शरद ऋतु के चन्द्रमा के सदृश मुख वाली. गुणलक्षणसम्पन्नाः = अच्छे गुण रूपी लक्षणों से सहित. निर्मलाः = विकार रहित अर्थात् निर्मल चित्त वाली, सुन्दर्यः = सुन्दरियां या स्त्रियां; विरेजुः = सुशोभित थीं।