Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रथमा
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देवदारू, तमाल, चम्पक. बकुल, सुपारी, नारियल आदि थे। जो सभी ऋतुओं में फल देने यो दशा शीत फ़ाया से ताप
को शान्त करने वाले होकर सुशोभित होते थे। स्थलपङ्कजमालाश्च मालत्योपाधिकास्तथा । केतकादिसमायुक्ता नृपारामा मनोहराः ।।५।। नानापुष्पसुगन्धारख्याः सुधास्वादलसत्फलाः । मालाकारप्रयत्नैश्च वर्धितास्ते सदा बभुः ।।६०।। अन्वयार्थ - मालाकारप्रयत्नैः = मालियों के प्रयत्नों से, वर्धिताः = बढ़े
हुये, तथा = और, सदा = हमेशा, मनोहराः = मनोहर अर्थात् चित्ताकर्षक, स्थलपङ्कजमालाः = कमल पंक्ति सुशोभित स्थल वाले, मालत्योपाधिकाः = मालती पुष्पों की उपाधि से विभूषित, केतकादिसमायुक्ताः = केवड़ा आदि पुष्प लताओं से संश्लिष्ट, नानामुष्पसुगन्धाख्याः = अनेक फूलों की सुगंध से व्याप्त, सुधास्वादलसत्फलाः = अमृत तुल्य स्वाद देने वाले सत्फलों वाले, ते = वे, नृपारामाः = राजा के सुन्दर-सुन्दर
बगीचे, बगुः = शोभा बढ़ा रहे थे अर्थात् सुशोभित हो रहे थे। श्लोकार्थ - मालियों के प्रयत्नों से प्रगतिशील एवं निरन्तर वृद्धि को प्राप्त
तथा हमेशा मनोहर लगने वाले, कमलपङ्कित से आच्छादित स्थल वाले, मालती पुष्पों की उपाधि से विभूषित. केवड़ा आदि पुष्ष लताओं से संव्याप्त, सुगंधित पुष्पों के पराग व सुगन्ध कणों से युक्त एवं अमृततुल्य स्वाद देने वाले सत्फलों से
सहित राजा के वे बगीचे सुशोभित होते थे। कूपाः समुद्रगम्भीराः वापिकाश्च तथैव हि।
विहङ्गपथिकोत्कृष्टतृषातपविनाशकाः ।।६।। अन्वयार्थ - (तत्र = उस नगर में), विहड़गपथिकोत्कृष्टंतृषातपविनाशकाः
= पक्षियों और पथिकों की प्यास और गर्मी जन्य कष्ट को मिटाने वाले, कूपाः - कुयें, तथा च = और, समुद्रगम्भीराः