Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 259
________________ 46 V. M. Kulkarni मंगलवलअं जीअं व रक्खि अंजं पउत्थवइआए । सहसत्ति दसणूससिअवाहलइआए तं भिणं ॥ (मङ्गलवलयं जीवितमिव रक्षितं यत् प्रोषितपतिकया । अकस्मात् दर्शनोच्छसितबाहुलतिकायां तद्भिन्नम् ।।) This gatha is cited in the Sarasvatikanthabharana (SK, p. 627) as well. In the second half the SK reads पत्तपिअ in place of सहसत्ति. (8) Madhya-nimitto yalha (Vol. IV p. 1105) - अत्थक्कागअदिठे बहुआ जामाउअम्मि गुरुपुरओ । जरइ णिवडताणं हरिसविसटाण वलआणं ॥ (अकस्मादागतदृष्टे वधूका जामातृके गुरुपुरतः । क्रुध्यति निपतझ्यो हर्षविकसक्यो वलयेभ्यः ॥) (9) Krtrimo yatha (Vol. IV p. 1114) तह अडअणाए रण पइमरणे बाहरुद्धकंठीए । अणुमरणसंकिणो जह जारस्स वि संकिअं हिअअं ।। (तथा असत्या रुदितं पतिमरणे बाष्परुद्धकण्ठया । अनुमरणशङ्किनो यथा जारस्यापि शङ्कितं हृदयम् ।।) __ This gatha is included by Weber in his edition (No. 873). (10) Atma-ninda yatha (Vol. IV p. 1127) - आवाअभअअरं...दिदै । (सेतुबन्धे) यथावा तुह ताह एरिसं ... हिअअं॥ The text of these twe Prakrit verses, as presented here, is not only corrupt but it also has got mixed up. The text should read as follows: आवाअभअअरं चिअ ण होइ दुक्खस्स दारुणं निव्वर्ण । जं महिलावीहच्छं दिटुं सहिअं च तुह मए अवसाणं ॥ (आपात-भयङ्करं एव न भवति दुःखस्य दारुणं निर्वणम् । यत् महिला-बीमत्सं दृष्टं सहितं (सोढं वा) च तव मया अवसानम् ।।) Setu. XI.74 सहिआ रक्खस-वसइ दिटूठं तुह णाह एरिसं अवसाणं । अज्ज वि वअणिज्ज-हअं धूमाइ च्चिअ ण पज्जलइ मे हिअअं ॥ (सोढा राक्षस-वसतिः दृष्टं तव नाथ ईदृशम् अवसानम् । अद्यापि वचनीयहतं धूमायते एव न प्रज्वलति मे हृदयम् ॥) A comparison of this original text with the printed text in the SP would reveal the error of the scribe in leaving out t" च तुह मए अवसाणं"the words that immediately follow and copying instead "रक्खसवसई दिहwords which really belong to the next verse but which also follow afger.

Loading...

Page Navigation
1 ... 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427