Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 417
________________ तरंगलाला एयं सोऊणं अह मुंदरि ओसक्किया मि चित्त-पडं । होही हु पुच्छियव्वं जइ तो तेसिं कहेहामि ।। ६०३ दीवं उत्तुयमाणी से उवाय (?) तत्थ वावडा । अच्छामि पलोयंती तत्तो परिपुच्छगं इंतं ।। ६०४ ता आगओ ससंभंत-लोयणो पुच्छिया है तेण । लिहिऊण चित्त-पर्ट नगरी विम्हाविया केण ।। ६०५ तं बेमि सेटिंकण्णा तरंगवइय त्ति नामओ भट्ट । तीए अभिप्पाय-कयं न य किर अलियं इम लिहियं ।। ६०६ सो एवं गहिय-परमत्थ-वित्थरो तस्स चित्त-कम्मस्स । तत्थेव पडिनियत्तो जत्थच्छइ सो तुहं नाहो ।। ६०७ अणुमग्गतो गया है तस्स य तो तत्थ एग-पासम्मि । अच्छामि अणण्ण-मणा वयणे तेसिं निसाती ।। ६०८ तो भणइ तत्थ गतुं तरुणो हासुस्सुओ उवह्संतो । मा भाहि पउमदेवय बालय तुट्टा हि ते गोरी ॥ ६०९ सेहिस्स उसमसेणस्स बालिया नामओ तरंगवती । आप्पाभिप्पाय-गयं तीए किर कयं इमं चिन्तं ॥ ६१० न यि किर अलियं लिहियं एयं किर वत्त-पुव्वयं सब्बं । पुच्छंतरसेव महं दासी दाही य पडिवयणं ।। ६११ एयं निसम्म वयणं पियस्स पप्फुल्ल-प उम-संकासं । घटुक्खं (?) व पहट सरूवप (?) मुहं जायं ।। ६१२ भणिय च णेण तत्थ य अस्थि हु मे जीवियव्वए आसा । सा एस('त्थ) चक्कयाई आयाया सेट्ठिा धूया ॥ ६१३ कद्द मण्णे कायव्यं अस्थ-पडित्थंभ-गव्यि[रे।] सेट्ठी । जं पडिसेहइ वरए सव्वे इंते कुमारीए ॥ ६१४ इणमो य कलुणतरगं जं से आलोयणं न संपडइ । नहा लाडल्ला (?) वा अउव्व-दट्ठव्व दट्ठव्वा (?) ॥ ६१५ एक्केण तत्थ भणियं दिट्ठा नाया तहिं पउत्ती से । संतस्स स्थि उवाओ उववत्ती होहिइ कमेणं ॥ ६१६ नस्थि य कोई दोसो सेट्टि कण्णा-कएण उवशंतुं । जाएमो किर कण्णा होही साहारणी लोए ॥ ६१७ जइ विन दाही सेट्ठी तो गेह बला वि तत्थ गंतूणं । तुज्झ पिय-कारणत्ता चोरा होऊण हरिहामो ॥ ६१८ तो भणइ एव भणिए बहु-पुरिस-परंपरागय-परूदं । कुल-सील-पच्चय-गुणं न हु तीए कए विराहेह ।। ६१९ जइ गहवती न दाही अम्हाणं कह व गेह सारेण । तो पाण-परिञ्चाटं काहं न य एरिसं काहं ॥ ६२०

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