Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 373
________________ सिद्धिसूरिकृत سم سم سم للع ب ه चावलि चउक :पूरावई, नेवज वेगि अणावई, ढोवइं जल पुणि आणी, निज निज भाविहि जाणी. घणी विधि निरषीय पूय, शांति भेटण सज हुआ, मुरहीयावाडइ सुहाणउ, करमहणण सपराणउ. बीजइ भुवणइं पास, नमिसुं धरि उल्लास, कटकीयावाडाइ कउतिग, मूरति दोठी ए झिगमिग. कंबोयु पास जिणंद, नव नव करइ आणंद, धवली पर्व सुधन्न, भेटिसु गुणि हि संपुन्न. जिणवर सारइ काज, सफल जनम मुझ आज, ढं ढेरवाडइ पूनमीया, वीर जिणेसर नमिया. कोकावाडइ पास, नव नव पूरइ आस, खेत्रपालवाडइ दीठा, लोचनि अमोय पइट्टा, टालइ सगलाइ दुक्ख, आपइ शवपद सुक्ख, पारी वावि सुहाणी, संभल बोलउ वाणी, वोर जिणेसर सार, पामिउ भवनउ पार. सोवनवरण सोहावउ, भवियण नित मनि ध्यावउ, सतकर जसु छइ देह, करनिवारण एह. वस्त वीर वंदो वीर वंदी चरम जिणराइ, जसु मानइं सुरराइ सवि, नर नरिंद बहु सेव सारई, धम्मपयासण दयापर, कुगइ कुमइ मिच्छित्त वारइ, तत्त्व त्रिणि पयास कर, गुण गाव्या संखेवि, नमिस देव मनि भाव धरि, सालवीवाडइ हेव, भास त्रिसेरीइ त्रिभुवनकउ राउ, नमिसु नेमि मनि धरि बहु भाउ, यादववंशविभूषण सामि, जसु आगलि बल छंडिउ कामि. कामवेलि सरिसी कामिनी, नवयौवन गजगतिगामिनी, चंद्रवदनि रतिरूप समान, कमलनयन तन चपकवानि, छडि राजमति नेह निवारि, देह दान पहुतउ गिरनारि, रेवतकाचलि सदा सोहंति, दीठ उ स्वामो मन मोहंति. ३८

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