Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 375
________________ सिद्धिसूरिकृत दोठउ अति रलीयामणउ, सा भम०, स्वामी अति धन धन त, नमिउ जिणेसर मन सुद्धई, सा भम०, नरसिंह नरह रतन्न. ५२ तसु धरि प्रतिमा रूयडी, सा भम०, अलवेसर दातार त, भणसाली महिपति घरहिं, सा भन०, नमिउ जिणेतर सार त. ५३ अतिहिं अपूरव दीसत उ, सा भम०, सकल जिणेसर सामि त, ठाकुरसी परि सुष करइतउ, सा भम०, दीठउ अतिहिं रसाल त, धापूनइ घरि ध्याविस्य उं, सा भम०, पास गुणे सुविशाल त. ५४ बे कर जोडी वीनवउं, सा भम०, भारे सुकृत भंडार त, देवदया परगुण निधि, सा भम०, स्वामी तूं दातार त. तह तूठइ सुष संपजइ, सा भम०, तई तूठइ नवि रोग, महियलि जस नित विस्तरइ, सा भम०, पामइ सयल संयोग. ५६ वाडी दउलतिपूरि सह), सा भम०, भवियण सारई सेव, ' वडली, वावडी, कउंणगिरई सा भम०, नमसि सीस नमेवि. ५७ कतउपुरि पणमउं सदा, सा भम०, मगलीपुरि जिणचंद त, इण परि चेत्रपवाडि करी, सा भम०, भेट्या संति जिणंद त. ५८ शरणाइत र समरथ, सा भम०, तुझ नमइं इंद नरिंद त, चउविह संघह कारणि, सा भम०, दिनि दिन दिउ आणंद त. ५९ पट्टणि प्रसिद्धी, हरषि किद्धी, चेतप्रवाडि सुहामणी, भगतां गुणतां श्रवणि सुणतां, अतिहिं छह रलीयामणी, पभण्या जि केइ नमउं, तइ भवर जे छइ ते सही, छिहत्तरइ वरसइ, मन हारेसह सिद्धहरिंदई कही. इति श्रीपत्तन-चेत्र-प्रवाडि समाप्ता॥

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