Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 409
________________ तरंगलोला भणिया य मए पिय-सहि कह विण्णाओ तए महं नाहो । जम्मंतर चक्काओ परियट्टिय-देह-संठाणो ॥ ५३७ तो भणइ सुणसु सररुह-विउद्ध-ससिणिद्ध-गब्भ-सरि-वण्णा । ... लद्धं (?) जहाणुपुवीए सुयणु जह दसणं तस्स ॥ ५३८ तुमए वि अहं सामिणि कल्लं अवरह काल-समयम्मि । अप्पाहिया स-सवह पडय घेत्तण गच्छंती ॥ ५३९ उड्डामि डूस-(?) महुयरि-मंडिय-पउम-सस्सिरीयम्मि । तं चित्तपट्टयं ते घरसालाए विसालाए ॥ ५४० तेणंतरेण अरविंद-नंदणो गयण-वंदाण (?)। घेतूण गओ सामिणि आलोयं जीयलोयस्स ॥ ५४१ ।। महिय-नीसंदो वम्मह-कंदो. उमदजुण्हाउ (?) । उण्णमइ पुण्ण-चंदो सामिणि रत्ती-मुहाणंदो ॥ ५४२ आयास-तलाए निम्मलम्मि पप्फुल्ल-चंद-पउमस्स । मय-भसल-चलण-पफंदियस्स जोण्हा-रओ पडइ ॥ ५४३ तत्थ वर-जाण-वाहण-समस्सिया सच्छ-गहिय-नेवच्छा । इट्टि-विलास-पगब्भा रायाणं ते अणुकरेंति ॥ ५४४ पर-पुरिस-दिट्ठि-विसय-परिवज्जिया जाण-संदण-गयाओ । पेच्छंति रत्तिचारं ईसालुय-मंद महिलाओ ॥ ५४५ केई य पायचारेण तत्थ चारं करंति वर-तरुणा । हत्थेसु समालग्गा हिययालग्गाण तरुणीण ॥ ५४६ केई य इट-गोट्ठिय-समागमातुर-माणसाबद्धा (?) । सामिणि अविणय-पिंड छलिय छइल्ला जुयाण पडत्ति (?) ॥ ५४७ पाउस-महा-नदीण व उयहिमइंतीण विउल-जल-वेगा। दीसंति पुरि पत्ता जण-वेगा राय-मग्गमि ॥ ५४८ पेच्छंति सुहं दीहा मडहा पुण उप्फिडंति दटुंजे। जण-निवह-पेल्लिया आरसंति थूला विसेसेणं ॥ ५४९ रत्ति-क्खयं कहेंति विव मज्झ-गय-झाम-बामण-सिहागा । उब्वत्त-वत्ति-नेहा अज्झायग-सच्छहा दीवा ।। ५५० जह जह परिगलइ निसा तह तह निदा-कलंकियच्छीओ।। पेच्छय-जणोवसरिओ पविरल-पुरिसो पडो जाओ ॥ ५५१ तत्थ जणं पेच्छंती अहमबि दीव-पडिजग्गण-मिसेणं । अच्छामि तुज्झ सामिणि आणाए स-बहु-माणाए ॥ ५५२

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