Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 407
________________ तरंगलाला पव्यय-सिहरामहणे उत्तम-गुण-रूव-संपउत्तस्स । कण्णाए पइ-लाभो सेसस्स जणस्स धण-लाभा ॥ ५२१ सत्ताहन्भनरओ होही ते पुत्त पहरिसो विउलो । रोत्तव्ययं च होही विण्णायं तविओगम्मि ॥ ५२२ . चितेमि अण्ण-पुरिसं जइ लहिहं जीविउं न इच्छामि । तेण वि चितिएण विणा को लाभो मज्झ इह भोए ॥ ५२३ इय मे चिंता जाया नवरि य गोवामि गुरु-सगासम्मि । हियय-गयं च रहस्सं मा होज पयासियमिह ति ॥ ५२४ ता ताब अहं पाणा धरेमि जा सा न एइ सारसिया । तीसे सोऊण तहा ताहे अप्प-क्खमं काहं ॥ ५२५ ताएण य अंबाए अभिनंदिय पूइया अहं तत्थ । भूमी-सयणाहितो उठ्ठिया नमिय सिद्धाणं ॥ ५२६ तत्थालोइय निंदिय राईए संभवं अतीयारं । विच्छलिय-पाय-करयल-मुहे य गुरु-चंदणम्मि कए ॥ ५२७ सागर-समं सचित्तं मणि-कंचण-रयण-मडियमुदारं । हम्मिय-तलमारूढा परियण-रहिया तहिं घरिणि ।। ५२८ वज(हु !)याणि विचितेती एवमहं तत्थ सठिया घरिणि । हियएण उव्वहंती त चक्कायं अणण्ण-मणा ।। ५२९ तो पव्व-काल-पभवो निद्ध-आयब-बिंव-विपुलो (?) । केसुय-कुसुम-सवण्णो सहस्स-रस्सि जग-पदीवो ॥ ५३० उइओ य विलिंपतो लन्ह-दव-कुंकुमेण जिय-लोए । पउमागर-पडिबोहण कय-वावारुदुरो सूरो ॥ ५३१ भावि-सिणेह-मइयाए तत्थ दिट्ठीए में पियति व्य । सफल(?) [-प्पयास.] परिओस-हसंत -मुह-पउमा ॥ ५३२ महुरोवयार-महुर-बयण-खाणी रइय-करतलामेला । उवसरिया सारसिया मज्झ सकोसं इमं चेव (बेइ!) ॥ ५३३ सो मेह-रहिय-वितिमिर-सरय-निसायर-समत्त-मुह सोहो । दिट्ठो चिर-प्पणट्ठो मण-रमणो ते मए(?) रमणो ॥ ५३४ आसंससु सीहोरुजिय-भय-संतठ्ठ-बाल-हरिणच्छि । तेण समयं पमुइया कामं कामस्स पूरेहि ॥ ५३५ एव भणेति य मए सहसा निय-वयण-मुहिय-हिययाए । तुट्ठाए समवगूढा अब्भुट्टिय-रोमकूवाए ॥ ५३६

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