Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 403
________________ तरंगलोला अम्हे वि पडिहारम्मि रंग-पदेशो कओ अणण्णमओ । भवण-कय-कण्णपूरो केऊरो रायमग्गस्स ॥ ४८७ तस्सेव एक-पासम्मि उद्धिओ वेइआ-परिक्खित्तो । कंबल रयण-वियाणो सो माझं पट्टओ घरिणि ॥ ४८८ तत्थ उवयार-कारी विस्सास-निही सिणेह-भायणं मे । पिययम-मग्गण-पणिही चित्त-पदे चेडिया ठविया ॥ ४८९ महर-पडिपुण्ण-पत्थुय-साइसया रसिय-वयण-भावण्णू । घरिणी सारसिया सा भणिया य मए इमं वयणं ॥ ४९० आयारिंगिय-भावेहिं जाणसि तं परस्स हियय-गयं । मह जीवियव्वयत्थं हिययत्थं ते इमं होउ ।। ४९१ जइ होही आयाओ पिओ महं सो इहं पुरवरीए । इठूण तो पडमिणं सरिही पोराणियं जाई ॥ ४९२ जं जीए सह पियाए जत्थणुभूयं सुहं च दुक्खं च । तं तीए विप्पओगे दळूणुकंठिओ होइ ॥ ४९३ सूएइ अच्छि-रागा ज' पिययममप्पियं च लोयम्मि । पुरिसस्स अणु-निव्वरियं हिययाकूयं निगूढं पि ।। ४९४ रुदस्स खरा दिट्ठी निम्मल-धवला पसण्ण-चित्तस्स । विलियस्स(?) य सनियत्ता मज्झत्था वीयरायस्स ।। ४९५ पर-बसण-दरिसणेण वि साणुक्कोसो जणो हवइ दीणो । अणुभूय-पच्चक्खो (?) विहडिओ भोग-सल्लेण ॥ ४९६ इणमो लोए वि सूई पोराणिं संभरेत्तु किर जाई । x x x x मुच्छ सुठु वि जो दारुणो हाइ। ४९७ सो पुण सभाव-वच्छल-मिउ-हियओ अपणो अणुभवित्ता । पडिभाविय-दुक्खो दठूण इमं गच्छिहिइ मुच्छे ।। ४९८ आवडिय-सोग-हियओ किलिण्ण-नयणो य होहिई सज्जो । तत्ताणुगमण-तुरिओ पुच्छिहिइ इमस्स कत्तारं ॥ ४९९ पर-लोय-विप्पभट्ट इय ददठूणं महं हियय-नाहं । जाणाहि चक्कवायं तं माणुस-जाइमायायं ॥ ५०० तं नामेण वि गुण-वण्ण-रूव-वेसेहिं सु-प्परिण्णायं । काऊण मज्झ कल्लं साहसु जइ तो अहं जीयं ॥ ५०१ होही मे तेण समं वयंसि ता हियय-सोग-निट्ठवणो । सुरय-रइ-संपओगो आसंगो काम-भोगाणं ॥ ५०२ जइ न विहत्थिहिसि सही तं नाहं मज्झ मंद-पुण्णाए । जिण-सत्थवाह-पहयं तो मोक्ख-पहं गहिस्सामि ।। ५०३

Loading...

Page Navigation
1 ... 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427