Book Title: Sambodhi 1975 Vol 04
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 263
________________ V. M. Kulkarni वालअ दूरे गामो पत्तलबहुला इमा अ वणराई । मा बच्च तुम उशिऊण सहिमत्थविच्छूडि अं ॥ (बालक दूरे ग्रामः पत्रबहुला इयं च वनराजो । मा ब्रजनु मामुझित्वा सखिसार्थविक्षिप्ताम् ।) सा तुइ सहत्थदिण्णं कण्णे काऊण बोरसंघडिअं । लज्जालुइणी बहुआ घरं गआ गामरच्छाए । (सा त्वया स्वहस्तदत्तं कर्ण कृत्वा बदरसंघटितम् लज्जावती वधू गृहं गता ग्रामरथ्यया ।।) The editor has given the Sanskrit chayu of this gathu below the Prakrit text. His Sanskrit chayat corresponds with the first quarter only. He, being inisled by the opening quarter has reproduced the Sanskrit chaya of an altogether different gatha fiom the Gathasapta-satt (II.94) : सा तुह सहत्थदिणं अज्ज वि रे सुहअ गंधरहिअं पि । उध्वसिअणअरधरदेव व्व ओमालिअं वहइ । It may be noted in this connection that the SK (p. 636) cites quite a different gāthä, opening with tlie same words, to illustrate "ślaghaya prema-parikşa" सा तइ सहत्थदिण्णं फग्गुच्छणकद्दमं थणुच्छंगे । परिकुविआ इव साहइ सलाहिरी गामतरुणीणं ।। (सा त्वया स्वहस्तदत्तं फल्गू-क्षण-कर्दमं स्तनोत्सङ्गे। परिकुपितेव गाधयति(?कथयति) श्लाघनशीला ग्रामतरुणीभ्यः ।) (22) Sakhyadnam karm ani sahaya-vyaparah, : yatha (Vol. IV p. 1197) एहेहि (? ए एहि) किंपि तिस्सा करण णिकिव भणामि अलमहवा । अविआरिअकज्जारंभआरिणी मरउ ण भणिस्सं ॥ (ए एहि किमपि तस्याः कृते निष्कृप भणामि, अलमथवा । । अविचारितकार्यारम्भकारिणी म्रियतां न भणिष्यामि ।।) This gaiha is cited in the Kavyaprakasa (X) as an illustration of the figure of speech called (vaksyamana-visaya) Aksapa. The Kavyaprakasa text reads "Kie vi kaena' in place of lissa kaena'. Incidently, it may be noted here that the Gathāsaptašati (VII-2) reads the first half of this gātbā differenily: ता सुहअ विलंब खणं भणामि कीअ वि कएण अलमह्वा । (तत् सुभग विलम्बस्व क्षणं भणामि कस्या अपि कृते, अलमथवा ।) .. (23) Dvyartha-pada-prayogo yathā (Vol. IV p. 1199) - चंदण बलिअंदड्ढ(दढ)कंचिबंधणं दीहरं सुपरिणाहं । होइ घरे साहीणं मुसलं धण्णाण महिलाणं ।। (चन्दन-वलितं दृढकाञ्चीबन्धनं दीर्घ सुपरिणाहम् । भवति गृहे स्वाधीनं मुसलं धन्यानां महिलानाम् ||)

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