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दलसुखमावणिया
समणसुत्तंi - प्र० सर्वसेवा संघ, वाराणसी, पृ० २७६, मू० सादा १०रु, पक्की १२रु । ई० १९७५ ।
आचार्य विनोबा भावे के प्रयत्न से जैनों के सभी सम्प्रदायों को मान्य हो ऐसा यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है । सभी संप्रदायों के आचार्य और विद्वानों की एक संगीति करके इस ग्रन्थ को मान्यता भी दी गई है । यह इसका विशेष महत्त्व है । इसमें भ० महावीर के उपदेश को प्राकृत भाषा में लिखे गये आगम आदि ग्रन्थों से संकलित किया गया है। भगवान् महावीर आधुनिक संदर्भ में, संपादक- डो० नरेन्द्र भानावत, प्र० अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर, पृ० ३४४ | म्० ४०रु० । ई० १९७४ | भगवान् महावीर के जीवन के सम्बंध में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ में अनेक विद्वानों के लेखों का संग्रह बड़े परिश्रम और सूझ बूझ से सम्पादकने किया है ।
निर्वाणशिखा संपादक - श्री कन्हैयालाल फूलगर आदि, प्र० - मित्र परिषद, कलकत्ता, ई० १९७४ | मूल्य दिया नहीं ।
विद्वानों के लेखों २५०० वें निर्वाण
लेख हिन्दी
भ० महावीर २५००वाँ निर्वाण महोत्सव के निमित्त से अनेक का संग्रह | विषय है, भ० महावीर और जैनधर्म तथा भ० महावीर के को ले कर महोत्सव जो हो रहा है उसके कार्यक्रम आदिका भी परिचय है । और अंग्रेजी में है ।
देवाधिदेव भगवान महावीर ले० मुनिश्री तत्त्वानन्द विजयजी, प्र० अर्हत्वात्सल्य प्रकाशन, मुंबई, पृ ४०४, मू० दश रुपिया ।
आ पुस्तकमा भ० महावीरना मात्र अतिशयोतुं विस्तारथी विवेचन छे.
Hemacandra's Dvyasrayakavya-A Literary and cultural Study by Satya Pal Narang M. A., Ph. D. Published by Devavāni Prakasana, Delhi-32, pp. 283, Rs. 30, A.D. 1972.
Dr. Satya Pal Narang for his Ph. D. thesis has studied Hemacandra's Dvyasrayakavya in various aspects :-Mythological, Historical, Grammatical, Geographical, Political, Sociological, Economical, Religious etc. Evalution of the book as a historical and a poetical work is also. attempted and also in the beginning of the book life and works of Hemacandra are examined in detail. Thus nothing is left out of the view of the author.
Vakpatiraja's Gaudavaho, Edited and translated by Prof. N. G. Sura, Publised by Prakrit Text Society, P. T.S. No. 18, Ahmedabad, pp. 100+ 178-+-340 Price Rs. 25. A.D. 1975.
Prof. Suru has not only trauslated this difficult text but has supplied the text with copious notes and an introduction dealing with the author and his Gaudavaho. Dr. P. L. Vaidya has rightly observed in his Forword "Prof. Suru's English translation is at once faithful and fluent. His notes are scholarly and cover a wide range of his classical studies. His Introduc tion is a scholarly piece, judiciously touching almost all the aspects of the