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( २४ ) भी संक्षिप्त जीवन गाथा देना आवश्यक था। पर उस इच्छा को भी संवृत्त करना पड़ा है।
कवि की संवतानुक्रम से लिखी हुई संक्षिप्त जीवनी और उनकी रचनाओं व लिखित प्रतियों की सूची नागरी-प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५७ अङ्क १ में प्रकाशित की गई थीं, पर उनकी रचनाओं के उदाहरण सहित जो विस्तृत जीवनी हम लिखना चाहते थे,वह भी करीब ५०० पृष्ठों के लगभग की होती, क्योंकि २७ वर्षों से हम इनकी रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसलिये हमने ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से संक्षिप्त जीवनी महोपाध्याय विनयसागर जी से लिखवा लेना ही उचित समझा और उनके भी बहुत संक्षिप्त लिखने पर भी १०० पृष्ट तो हो ही गये।
भाषाएँ भी इस ग्रन्थ में कई हैं। प्राकृत, संस्कृत, समसंस्कृत, सिन्धी की रचनाएँ थोड़ी हैं, पर राजस्थानी, गुजराती और हिन्दी तीन तो मुख्य ही हैं। इनमें से हिन्दी के भी इसमें दो रूप मिलते हैं; जो विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अन्य पदों एव गीतों की हिन्दी भाषा से पृ० ३६३ में जिनसिंहसूरि सम्बन्धी जो ५ पद्य छपे हैं, उनसे तुलना करिये। वे एक दम खड़ी बोली के और मानों जहांगीर के भेजे हुए मुसलमान मेवड़ों की स्वयं की भाषा हो, लगते हैं । उसका थोड़ा सा नमूना देखियेबे मेवरे, काहेरी सेवरे,अरे कहाँ जात हो उतावरे, टुक रहो नइ खरे। हम जाते बीकानेर साहि जहाँगीर के भेजे, हुकम हुया फुरमाण जाई मानसिंघ कु देजे। सिद्ध साधक हउ तुम्ह चाह मिलणे की हमकु, वेगि आयउ हम पास लाभ देऊँगा तुम कुँ । १। बे मेवरे० ।
कवि के गीतों में दोनों प्रकार का सङ्गीत प्रतिध्वनित हुआ है। बहुत से गीत तो शास्त्रीय संगीत की राग-रागनियों में रचे गये हैं
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