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बहुत लम्बी है । जैसे कि -भास, स्तवन, फाग, सोहला, हुलरावरणा, गूढा, चन्द्रावला, आलीजा, हिंडोलना, चौमासा, बारहमासा, सांझी, रात्री जागरण, श्रोलम्भा, चूनड़ी, पर्व - गीत, तप- गीत, वाणी - गीत, स्वप्नगीत, वेलिगीत, वधावा. बधाई, चर्चरी, तिथिविचारणा, वियोग, प्रेरणा- गीत, प्रबोध-गीत, महिमा-गीत, मनोहरगीत, मङ्गल-गीत, क्षामरणा-गीत, हियाली गीत इत्यादि नाना प्रकार के गीत इस संग्रह में हैं । समय-समय पर कवि हृदय में जो स्फुरणा हुई, उनका मूर्त्त रूप इन गीतों में हम पाते हैं । यद्यपि afa को अपनी काव्य-प्रतिभा दिखाने की लालसा नहीं थी, फिर भी कुछ रचनाएँ उसको व्यक्त करने वाली स्वतः बन गई हैं । ऐसी रचनाओं में कुछ तो जरा दुरूह सी लग सकती हैं, पर स्वाभाविक प्रवाह बना रहता है । तृणाष्टक, रजोष्टक के अन्त में तो वि स्वयं कहा है कि ये कवि कल्लोल के रूप में ही बनाये गये हैं । इनमें कल्पनाएं बड़ी सुन्दर हैं। बहुत सी रचनाओं में ऐतिहासिक तथ्य भी मिलते हैं। जैसे पृ० ३०, ५८, ६२, ६६, ६८, ७६, ७, ८७, ८६, १०७, १२३, १४४, १५३, १६४, १६६, १७६, १७७, १७८, ३०६, ३७७, ३६४, ४०४ ।
शब्दों और भावों की दृष्टि में भी इस संग्रह की कतिपय रचनाओं का बहुत ही महत्त्व है । अनेक अप्रसिद्ध व अल्पप्रसिद्ध शब्दों का प्रयोग इनमें पाते हैं, जिनका अर्थ अभी तक शायद किसी कोश में नहीं मिलेगा | हमारा विचार ऐसे शब्दों का कोष भी देने का था, पर ग्रन्थ इतना बड़ा हो गया कि इसी तरह के अनेक विचारों को मूर्त रूप नहीं दे सके। इसी प्रकार छत्तीसियों और कई स्तनों में जिन व्यक्तियों का केवल नामोल्लेख हुआ है, उनमें से बहुतसों का परिचय कम लोगों को ही होगा तथा जिन साधु और सतियों के जीवन चरित्र को स्पष्ट करने वाले गीत प्राप्त हैं उनकी
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