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(२) आशाधरके समयमें सपादलक्ष देशमें सांभरका राज्य भी शामिल था, यह उनके दिये हुए "शाकंभरीभूषण" विशेषणसे स्पष्ट होता है। शाकंभरी झील जिसमें कि नमक पैदा होता है और जिसे
आजकल सांभर कहते हैं, सवालख देशकी श्रृंगाररूप थी। मंडलकरदुर्गको आजकल ' मांडलगढ़का किला' कहते हैं । यह इस समय मेवाड़ राज्यमें है । उस समय मेवाड़का सारा पूर्वीय भाग चौहानोंके आधीन था । चौहान राजाओंके बहुतसे शिलालेख वहां अबतक मिलते हैं । महाराजाधिराज पृथ्वीराजके समय तक मांडलगढ़ सपादलक्ष देशके अन्तर्गत था और वहांके अधिकारी चौहान राजा थे । पीछे अजमेरपर मुसलमानोंका अधिकार होनेपर वह किला भी उनके हस्तगत हो गया था।
आशाधरकी स्त्री सरस्वतीसे एक छाहड़ नामका पुत्र था, जिसने धाराके तत्कालीन महाराजाधिराज अर्जुनदेवको अपने गुणोंसे मोहित कर रक्खा था। वह अपने पिताका सुपूत पुत्र था । यद्यपि उसके कीर्तिशाली कार्योंके जाननेका कोई साधन नहीं है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि, वह होगा अपने पिता ही जैसा विद्वान् । इसीलिये पंडितराजने एक श्लोकमें अपने साथ उसकी तुलना की है कि “ जिस तरह सरस्वतीके (शारदाके ) विषयमें मैंने अपने आपको | उत्पन्न किया, उसी तरहसे अपनी सरस्वती नामकी भार्याके
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