Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 17
________________ FAST..२० रत्नमाला .. येन वः प्रतिज्ञा वर्धमानजिनाभावाद् भारते भव्य जन्तवः | कृतेन येन राजन्ते तदहं कथयामि वः ।। ५ अन्वयार्थ वर्धमान वर्धमान जिन जिनदेव के अभावात अभाव से भारते भरत क्षेत्र में भव्य भव्य जन्तवः प्राणी जिस कृतेन क्रिया से राजन्ते शोभायमान होते हैं तत् उसको आप सबके लिए अहं कथयामि कहूंगा। अर्थ : वर्धमान जिनेन्द्र के अभाव में भरत क्षेत्रस्थ जीव जिन क्रियाओं से शोभायमान होते हैं. उसको मैं आप सभी के हेतु कहूंगा। भावार्थ : वर्धमान शब्द विशेषण और नाम दोनों रूप में प्रयुक्त होता है। आचार्य जयसेन वर्धमान शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए लिखते हैं कि अव समन्तादृध्वं मानं प्रमाणं ज्ञानं यस्य स भवति वर्धमानः (प्रवचनसार-१) जो सब तरफ से अपने में उन्नत ज्ञान को धारण करते हैं, वे वर्धमान है। भगवान महावीर का जन्म नाम भी वर्धमान है। इस कारिका में वर्धमान संज्ञा शब्द है- अतः चौबीसवें तीर्थंकर का ग्रहण करना चाहिये। जबतक जिनेन्द्र प्रभु का विहार इस भारत भूमि पर हो रहा था, तबतक धर्म का स्वरुप वे अपने दिव्यध्वनि द्वारा प्रकट करते थे। उनके दर्शन भी मिथ्यात्व को खण्डखण्ड कर सम्यग्दर्शन प्रदान करता था तथा कषायें मन्द हो जाने से शुभ क्रियाओं में स्वयमेव प्रवृत्ति हो जाती थी। जिनेन्द्र प्रभु के मोक्ष जाने के बाद धर्म देशना का कार्य ३ केवलियों ने किया, तत्पश्चात् श्रुतकेवली, अंग-अंगांश ज्ञानधारी महामुनियों ने किया। वर्तमान में भरत क्षेत्र में न तो केवली है, न त केवली। इतना ही क्या? अंगअंगांशधारी सन्त भी धरती पर विद्यमान नहीं हैं। ऐसे कठिन स्थिति में एक सदगृहस्थ अपनी क्रियाओं के विषय में बोध प्राप्त कैसे करें? ग्रंथकार कहते हैं कि "उन क्रियाओं का वर्णन मैं करूंगा।" सुविथि शाम चन्तिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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