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अन्वयार्थ :
नमस्कार :
स्मृतः
रात्रौ
गुरु - २०
पृष्ठ हा
रात्रि में णमोकार मन्त्र का स्मरण करने का फल
रात्रौ स्मृत नमस्कारः सुप्तः स्वप्नान् शुभाशुभान् । सत्यानेव समाप्नोति पुण्यं च चिनुते परम् ।। ५१.
सृप्तः
स्वप्नान्
शुभाशुभान्
सत्यान्
एव
समाप्नोति
रत्नमाला
च
परम्
पुण्यम् चिनुते
णमोकार मन्त्र का
स्मरण कर
रात्रि में
सोने वाला
स्वप्न में
शुभाशुभ फल को यथार्थ
ही
प्राप्त करता है
और
-
परम
पुण्य
संचय करता है।
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अर्थ: जो व्यक्ति णमोकार मन्त्र का स्मरण करते हुए रात्रि में शयन करता है, वह स्वप्न में शुभ व अशुभ फल को जान लेता है तथा परम पुण्य का संचय करता हैं।
भावार्थ: अनन्तर पूर्व कारिका में णमोकार मन्त्र के अनुस्मरण का फल बताया गया था। इस में भी उसी के महत्त्व को दृढ़ किया जा रहा है।
ध्यान ग्रंथों में धर्मध्यान के ४ भेद किये गये हैं पिण्डस्थ, पदस्य, रूपस्थ और । रूपातीत। णमोकार मन्त्र का ध्यान करना, पदस्थ धर्मध्यान है। आ. योगीन्द्रदेव ने लिखा है कि पदस्थं मन्त्र वाक्यस्थम् । ज्ञानांकुश स्तोत्रम् - १४) मन्त्र वाक्यों का ध्यान करना, पदस्थ धर्मध्यान है।
आगम शास्त्र में णमोकार मन्त्र को सुन कर भी अनेक पशुओं ने अपना उध्दार किया, | इस के प्रमाण उपलब्ध होते हैं। यथा
१. वन विहार करने गये भगवान् पार्श्वनाथ ने (गृहस्थावस्था में) जलते हुए एक नाग और नागिन को करुणार्द्र हो णमोकारमन्त्र सुनाया, जिस के फलस्वरूप वे दोनों मर कर धरणेन्द्र और पद्मावती हुए ।
सुविधि ज्ञान चनिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,