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गुहा D. .. २
रत्नमाला । सम्पूर्ण श्रेय कुमारिल भट्ट व प्रभाकर भट्ट को जाता है। इस मत में कर्म फल का दाता कर्म |
है, ईश्वर नहीं, अतः इसे निरीश्वर वादी भी कहते हैं। । वे शब्द की नित्यता को स्वीकार करते हैं। इस दर्शन के अनुसार कर्म से अदृष्ट उत्पन्न | होता है तथा अकृष्ट संकल्पित सिध्दियों को प्रदान करता है। ___ इस दर्शन के मुख्य ग्रंथकार कुमारिल भट्ट, प्रभाकर भट्ट और मुरारि भट्ट प्रभृति हैं तथा श्लोकवार्तिक, कासकृत्स्न मीमांसा, न्याय प्रकाश तथा जैमिनीय न्यायमाला आदि प्रमुख ग्रंथ हैं।
ई) मीमांसा दर्शन: मीमांसा यानि समीक्षा। पूर्व और उत्तर के भेद से ये दो प्रकार की है। पूर्व मीमांसा जैमिनीय दर्शन है तो उत्तर मीमांसा वेदान्त दर्शन है।
वेदान्तियों का कथन है, कि ब्रह्मा-आत्मा-परमात्मा-सृष्टि आदि की समस्या वेदान्त द्वारा ही सुलझ सकती है। इस दर्शन का मूल लक्ष्य ब्रह्म का अन्वेषण करना है। द्वैत. अद्वैत-विशिष्टाद्वैत-चिनाद्वैत, निर्गुण-सगुण आदि समस्त मान्यतायें इस में समाविष्ट हो जाती है। उपनिषद इस दर्शन का मूल स्त्रोत है। वे मात्र ब्रह्म की सत्ता स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि सम्पूर्ण जीवसृष्टि परमात्मा (ब्रह्म) का प्रतिबिम्ब मात्र है।
आश्मरथ्य, शंकराचार्य, मण्डनमिश्र, सुरेश्वर, वाचस्पतिमिश्रादि इन के प्रमुख ग्रंथकार हैं, तो खण्डन खण्ड खाद्य, अद्वैतसिद्धि, न्याय मकरंद, न्याय दीपावलि आदि प्रमुख ग्रंथ
___ संसार के ये समस्त दर्शन स्याद्बाट चिहांकित न होने से मिथ्या हैं। फलतः संसार के ही कारण हैं।
अतः जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों का पोषण नहीं करना चाहिये।
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सुविधि शाम चप्तिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.