Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 128
________________ गुरुा . • २० रत्नमाला पृष्ठ ..120 जैन -- विधि सर्वमेव विधिज॑नः प्रमाणं लौकिकः सताम् । यत्र न व्रत हानिःस्थात् सम्यक्त्वस्य च खण्डनम् ।।६६. अन्वयार्थ: सज्जनों के द्वारा प्रमाणम् प्रमाणभूत सर्वम् सब लौकिकः लौकिक विधि जैनः जैन (विधि) सताम् विधिः स्यात् यत्र सभ्यक्त्वस्य खण्डनम् च जहाँ सम्यक्त्व का खण्डन और व्रतहानि नहीं होती है। व्रतहानिः स्यात् अर्थ : सज्जन जिसे प्रमाणभूत मानते हैं, ऐसी सर्व लौकिक विधि जैन विधि है। वह विधि सम्यक्त्व का खण्डन और व्रतहानि को नहीं करती है। भावार्थ : आचार पद्धति द्रव्य-क्षेत्र-काल और भावों का निमित्त पाकर अपना रूप परिवर्तित करती रहती है। क्रियाओं का हेयत्व और उपादेयत्व परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे कि दृढ़ सम्यग्दृष्टि जीव को भी यदि न्यायालय में जाना पड़े, तो वहाँ गीता पर हाथ रखकर शपथ खानी पड़ेगी कि मैं जो कुछ भी कहूँगा - वह सत्य कहूंगा। वहाँ वह जिनवाणी पर ही हाथ रखूगा, गीता पर नहीं - ऐसा हठ नहीं कर सकता। आचार पध्दति में देशीय भेद भी अनेक प्रकार के हैं। ऐसे समय में प्रत्येक विषय पर |आगम प्रमाण मिलना, असंभव है। अन्ततोगत्वा स्व-विवेक ही कार्यकारी है। विज्ञान की प्रगति के कारण बहुत सी नयी वस्तुयें प्रयोग में आने लगी है- जिस के हेय और उपादेयत्व के विषय में आगम प्रमाण मिलना, संभव नहीं है। वहाँ आगमानुसार तर्क का ||उपयोग कर के कुछ निर्णय लिये जा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप - आइसक्रीम खानी | सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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