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पुच्छ
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रत्नमाला
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नित्यमह : प्रतिदिन अपने गृह से जिनालय में ले जाये गये गन्ध-पुष्प-अक्षत आदि के द्वारा जिन भगवान् की पूजा करना, नित्यमह है । अथवा भक्ति से जिनबिम्ब और | जिनालय आदि का निर्माण कराना, उन के संरक्षण के लिए राज्य शासन के अनुसार | पंजीकरण करा कर के दान देना, नित्यमह है अथवा अपनी शक्ति के अनुसार मुनीश्वरों की नित्य आहारादि दान देने के साथ जो पूजा की जाती है, वह नित्यमह कहलाती है।
चतुर्मुख मह : महा मुकुट बध्द राजाओं के द्वारा की जानेवाली हा चतुर्मुख मह कहलाती है। इस के महामह और सर्वतोभद्र ये अन्य नाम हैं।
कल्पद्रुममह : चक्रवर्तियों के द्वारा "तुम लोग क्या चाहते हो?" इस प्रकार याचक जनों से पूछ-पूछ कर उन की आशा को पूर्ण करने वाला जो किभिच्छिक दान दिया जाता है, वह कल्पद्रुम मह है ।
अष्टाहिका मह : आषाढ- कार्तिक और फाल्गुन मास में अष्टमी से पोर्णिमा तक | अष्टात्रिका पर्व होता है। उस में विशेषता से नन्दीश्वर द्वीप की पूजा की जाती है, उसे | अष्टाहिका मह कहते हैं।
जो श्रावक अपने व्रतों का निर्दोष पालन करता है तथा नित्य व नैमित्तिक पूजा करता है, वह भव्य देवताओं के द्वारा पूज्य व सन्तों के द्वारा मान्य हो जाता है।
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