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पुष्प रा. -२०
रत्नमाला
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गृहस्थाचार्य का लक्षण क्रियास्वन्यासु शास्त्रोक्त • मार्गेण करणं मता! कुर्वमेवं क्रियां जैनो गृहस्थाचार्य उच्यते।। ५७.
अन्वयार्थ :
शास्त्रोक्त मार्गेण अन्यासु किया करणम मता एवम्
शास्त्र में कहे गये मार्ग से अन्य किया.में को करना माना गया है
और अन्य) क्रियाओं को करने वाला जैन गृहस्थाचार्य कहलाता है।
क्रियाम्
कुर्वन जैनः गृहस्थाचार्य उच्यते
अर्थ : शास्त्रोक्त पद्धति से अन्य क्रियायें भी करनी चाहिये। ऐसी क्रियायें करनेवाला जैन गृहस्थाचार्य कहलाता है।
भावार्थ : पाक्षिकी, अष्टमी, चतुर्दशी अथवा नन्दीश्वर पर्व की क्रियाओं के अतिरिक्त अनेक क्रियायें हैं। उन क्रियाओं को करनेवाला गृहस्थाचार्य कहलाता है। गृहस्थस्यापि शुध्दस्य, जिनवेदोपजीविनः । गृहस्थाचार्यता देया, सच पूज्योऽखिलैर्जनः।।
इन्दनन्दि नीतिसार . २१) अर्थात : जो गृहस्थ होकर भी शुध्द है जिनेन्द्र आगम के द्वारा जीवन चलाते हैं, उनके लिए गृहस्थाचार्य पद देना योग्य है. । पंचाध्यायीकार ने गृहस्थाचार्य का कार्य बताते हुए कहा है कि जिस प्रकार दीक्षाचार्य दीक्षा देता है - उसी प्रकार गृहस्थाचार्य गृहस्थ को आदेश दे सकता है।
(पंचाध्यायी २/६४८)
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